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नहीं लाया जा सकता। इन में घट शब्द का प्रयोग मुख्य नहीं है किन्तु गौण है।
इतना ही नहीं ऋजुसूत्र नय वर्तमान काल के जिस भाव घट को स्वीकार करता है उसको भी शब्द नय सात भंगों में से किसी एक भंग के द्वारा विशिष्ट रूप में स्वीकार करता है। ऊंची ग्रीवा आदि स्वपर्यायों की अपेक्षा से जब सत् रूप में घट की विवक्षा होती है तब वह घट कहा जाता है। पट त्वचा को रक्षा करता है। इस पट पर्याय के द्वारा असत रूप से विवक्षा के कारण घट अघट है। स्त्र और पर दोनों पर्यायों के साथ विवक्षा की जाय तो कोई शब्द घट को नहीं कह सकता, इसलिए अवक्तव्य हो जाता है। इसके अनन्तर इन तीनों भंगों के परस्पर सम्बन्ध से अन्य चार भंग भी बन जाते हैं। जल लाने में सामर्थ्य रूप घट शब्द के मुख्य अर्थ को लेकर शब्द नय भाव घट में सात भंगों को स्वीकार करता है। परन्तु ऋजुमूत्र जल लाने आदि क्रिया के कारण भाव घट को सात भंगों के साथ नहीं मानता। ऋजुसूत्र का वर्तमान काल में घट का जो स्वरूप है उसी के साथ मुख्य रूप से सम्बन्ध है । शब्द के वाच्य अर्थ पर आश्रित सात भंगों के साथ जो स्वरूप है उसके विषय में ऋजुसूत्र का ध्यान नहीं है । इस रीति से शब्द नय का विषय बहुत संकुचित हो जाता है। ऋजुसूत्र के अनुसार जल लाने का सामर्थ्य न होने पर भी यदि घट के आकार की प्रतीति होती है तो घट शब्द का प्रयोग हो सकता है। इस दशा में ऋजुसूत्र के अनुसार जल का लाना आदि जो घट शब्द की वाच्य क्रिया है उसका आश्रय लेकर सात भंग नहीं हो सकते, अतः ऋजुसूत्र का विषय शब्द नय से बहुत अधिक है ।
मूलम् :- यद्यपीदृशसम्पूर्ण सप्तमङ्गपरिकरितं वस्तु स्याद्वादिन एव अगिरन्ते, तथापि ऋजुसूत्रकृतैतदभ्युपगमा