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दूर होगी इतना निश्चय भो नहीं हो सकता। भूतकाल में भोजन आदि के द्वारा तूंपिका अनुभव करने के कारण लोग भूख-प्यास के होने पर भोजन आदि को लेते हैं । आगामी काल में इन वस्तुओं से सुख की प्राप्ति और दुःख दूर हो सकेगा यह समझ कर वर्तमान में धन वस्त्र आदि का संचय किया जाता है। इस प्रकार व्यवहार का तीन कालों के अर्थों के साथ सम्बन्ध है।
दूसरी ओर ऋजुसूत्र वर्तमान काल में अर्थ का जो स्वरूप है उसका प्रधान रूप से आश्रय लेता है। अर्थ के भूत और भावी स्वरूप की उपेक्षा करता है। देश और काल के भेद से अर्थ कभी सुख और कभी दुःख के उत्पादक बन जाते हैं। भूतकाल की अवस्था को प्रधान रूप से ध्यान में लाया जाय तो मनुष्य सुख चाहता हुभा भी आपत्ति में गिर जायगा। विशेष प्रकार के काल में ऋजुसूत्र नय के अनुसार वर्तमान का विचार मुख्य रूप से करना पडता है व्यवहार और ऋजुसूत्र का विरोध तब नहीं रहता जव भिन्न अपेक्षाओं का विचार किया जाता है। तीन कालों के अर्थ के साथ सम्बन्ध होने से व्यवहार का विषय बहुत है और केवल वर्तमान के साथ प्रधान रूप से सम्बन्ध होने के कारण ऋजुसूत्र का विषय अल्प है।
मूलम्:- कालादिभेदेन भिन्नार्थोपदेशकाच्छब्दात्तद्विपरी तवेदक ऋजुसूत्रो बहुविषयः ।।
अर्थः- काल आदि के भेद से पदार्थ को भिन्न माननेवाले शब्द की अपेक्षा ऋजुसूत्र वस्तु के उस स्वरूप को प्रकाशित करता है जो शब्द नय के प्रतिकूल है इसलिए बहुत विषय वाला है।
विवेचनाः- ऋजुसूत्र वर्तमान काल के अर्थ का प्रधान रूप से निरूपण करता है परन्तु भूत और भावी काल के साथ सम्बन्ध की उपेक्षा करता है। वह काल के भेद से अर्ध को भिन्न नहीं