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________________ विवेचनाः- अनेक धर्मों का गौण मुख्य भाव से प्रतिपादन करने वाला अभिप्राय नैगम है। इस लक्षण के अनुसार नैगम के जितने उदाहरण पहले दिये जा चुके हैं उन सब में केवल भावात्मक अर्थों का निरूपण है। किसी अभाव का प्रतिपादन नहीं है। नेगम का इससे भिन्न अन्य लक्षण इस प्रकार है । ' अनिष्पनार्थ संकल्पमात्रमाही नैगमः' (स्याद्वाद रत्नाकर परि.७, सूत्र १०, वृष्ठ- १०५२ पर)। जो अर्थ विद्यमान नहीं है उस के संकल्प को प्रकाशित करनेवाला अभिप्राय नैगम है कुल्हाडा लेकर कोई पुरुष जा रहा हो और भन्य कोई उसको पूछे - 'किस लिए आप जा रहे हैं ? ' तो वह उत्तर में कहता है - ' मैं प्रस्थ के लिए जा रहा हूँ।' यहां पर प्रस्थ विद्यमान नहीं है, जानेवाला कुल्हाडे से लकड़ी को काटकर प्रस्थ की रचना करेगा इसलिए प्रस्थ शब्द का प्रयोग करता है। संकल्प के विषय विद्यमान और अविद्यमान दोनों प्रकार के अर्थ हो सकते हैं। यहां पर प्रस्थ अविद्यमान है और संकल्प का विषय है इसलिए यहाँ पर नैगम नय है। संग्रह नय जीव अजीब आदि जिन अर्थोंका संग्रह करता है, वे सब भावात्मक होते हैं। इस प्रकार संग्रह का विषय केवल भाव है और नैगम के विषय-भाव और अभाव दोनों हैं, अतः नेगम का विषय संग्रह से अधिक है। इस वस्तु का निरूपण श्री वादिदेवसूरि जीने स्याद्वादरत्नाकर में किया है। [स्याद्वादरत्नाकर पृष्ठ १०६७] मूलम्:- सद्विशेषप्रकाशकाव्यवहारतः संग्रहः समस्तसत्समहोपदर्शकत्वादह विषयः । अर्थः- सत् वस्तु के भेदों का प्रकाशक व्यवहार नय है और संग्रह समस्त सत् वस्तुओं के समूह का प्रकाशक है इसलिए संग्रह का विषय व्यवहार से बहुत है ।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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