SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 493
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नहीं होते। प्रतिवन्धक पाप के नष्ट होनेपर तत्त्वज्ञान उत्पन्न होता है और फिर आत्मा मोक्ष को प्राप्त करता है, इसलिए ज्ञान ही मोक्ष का मुख्य कारण है, कर्म नहीं । उदयनाचार्य आदि नैयायिकों का यह मत है। जैन मत के अनुसार ज्ञान और कर्म मोक्ष के प्रति समान रूपसे कारण हैं। गौण मुख्य भाव से नहीं। दुःख के साधन का नाश मोक्ष है। दुःख के प्रधान साधन कम हैं जब तक कर्म का नाश नहीं होता तब तक मोक्ष नहीं हो सकता। क्षायिक केवलज्ञान और यथाख्यात चारित्र आदि कर्म मोक्ष के कारण हैं। तत्त्वज्ञान केवल मिथ्याज्ञान के नाश में कारण नहीं है किन्तु सकल कर्मों के नाश में अथवा समस्त कर्मों के नाश के साथ समनियत भाव से रहनेगले क्षायिक सुख में कारण है, अतः कर्म और ज्ञान दोनों प्रधान रूप से कारण हैं। प्रतिबन्धक पापों की निवृत्ति में कर्मों को कारण मानकर यदि उनको गौण कहाजाय तो तत्त्व ज्ञान को भी गौण कहना पडेगा। जिनको केवल ज्ञान उत्पन्न हो जाता है वे भी जब तक भवोपग्राही चार कर्मों को नष्ट नहीं कर लेते तब तक उसी क्षण मुक्ति को नहीं प्राप्त करते । मुक्ति के प्रतिबन्धक कर्मों को तत्त्वज्ञान भी नष्ट करता है। आगम, केवली के ज्ञान सहित वीर्य को कर्म के नाश में कारण कहते हैं इसलिए तत्त्वज्ञान भी कर्म नाश में कारण है। इस दशा में कर्मों की निवृत्ति करनेवाला तत्त्वज्ञान गौण कारण हो जायगा और कम मोक्ष का प्रधान कारण हो जायगा। आगम कहता है, वेदनीय कर्म को अत्यन्त अधिक जानकर और आयुकर्म को थोडा जानकर कर्म का प्रतिलेखन करने के लिए जिन समुद्धात करते हैं। ज्ञान और संयम से युक्त तप मोक्ष का कारण है। यह तप जब बारबार किया जाता है तब क्रिया से शून्य निवृत्ति रहित ध्यान होता है यह ध्यान मोक्ष का साक्षात् कारण है इस ध्यान से भवोपग्राही को नष्ट होते हैं। इस ध्यान में केवल ज्ञान ही नहीं है की भी है।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy