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________________ २२ शब्द का प्रयोग गाय में होता है । गोत्व जाति जब तक गायका शरीर है तब तक उसमें रहती है। गाय बैठी हो अथवा सो रही हो तो चलने की क्रिया न होने पर भी गोत्र जातिका ज्ञान होता है । उस कालमें गमन क्रिया उपलक्षण होती है । जो वस्तु उपलक्षण रूप में होती है वह एक बार प्रतीत होकर पीछे अविद्यमान होने पर भी अर्थका ज्ञान करा देती है। 'काक जिस पर बैठा है वह देवदत्त का घर है' इस प्रकार जब कहते हैं तब देवदत्त के घर के लिए काक उपलक्षण होता है । देखने वाला घर पर काकको देखता है परन्तु घर के पास पहुँचते पहुँचते काक उड जाता है । उड जाने पर भी देवदत्त के घरको अन्य घरों से भिन्न रूप में प्रतीत करा देता है । गो शब्द से जो गमन क्रिया प्रतीत होती है वह भी उपलक्षण है। जब वह नहीं रहती तब गमन क्रियासे गोल जाति उपलक्षित होकर प्रतीत होती है इस प्रकार का उपलक्षेत सामान्य गो शब्द की प्रवृत्ति में निमित्त है । रूढि इस विषय में प्रमाण है। यदि क्रियाएं उपलक्षित सामान्य शब्द की प्रवृत्ति का निमित्त न हो तो गो शब्द की गाय में रूढि नहीं हो सकती । साढे के कारण लोग कोती अथवा बैठी गायको भी गौ कहते हैं । एवंभूत नय व्युत्पत्ति के और प्रवृत्ति के निमित्त को भिन्न नहीं मानता। उसके अनुसार केवल क्रिया शब्द की प्रवृत्ति में निमित्त है । Te स्वर्गका अधिपति शासन आदि करता है तब ऐश्वर्य से विशिष्ट होनेके कारण एवंभूत नय के अनुसार इन्द्र शब्दका वाच्य है । जब असुरों के नगर का विदारण करता है, तब वह इन्द्र शब्द से नहीं कहा जा सकता । तब उसको पुरंदर शब्द से कहना चाहिए । 1 मूलम्:- न हि कश्चिद क्रियाशब्दोऽस्यास्ति | गौरव इत्यादि जातिशब्दाभिमतानामपि क्रिया शब्दत्वात् गच्छतीति गाः, आशुगामित्वादश्व इति । शुक्लो, नील इति गुणशब्दा
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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