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मलम:-य एष चोपकारोऽस्तित्वेन स्वानुरक्तत्वकरणं स एवान्यैरपीत्युपकारेणाभेदवृत्तिः।
अर्थः-(५) अस्तित्व जिस उपकार को करता है वही उपकार अन्य धर्म भी करते है । यह उपकार से अभेदवृत्ति है। .. - विवेचना:-यहां पर उपकार का अर्थ है अपने रंग में रंगना । अस्तिस्त्र के कारण वस्तु सत् प्रतीत होती है। प्रमेयत्व के कारण प्रमेय प्रतीत होती है। वाच्यत्व के कारण बाच्य प्रतीत होती है। लाल रंग वस्त्र को लाल और पीला रंग वस्त्र को पीला करता है अस्तित्व आदि धर्म भी अर्थ को अपने सम्बन्ध से अपने स्वरूप के साथ प्रकाशित करते हैं। धर्मी को अपने स्वरूप के साथ प्रकाशित करना धर्मों का उपकार है।
मलम्:-य एव गुणिनः सम्बन्धीदेशः क्षेत्र लक्षणोऽस्तित्वस्य स एवान्येषामिति गुणिदे. शेनाभेदवृत्तिः। . अर्थ:-(६) अस्तित्व धर्म गुणी अर्थ के जिस क्षेत्ररूप देश में रहता है, वही देश अन्य धर्मों का भी हैयह गुणी के देश के द्वारा अभेदवृत्ति है। . मूलम्:-य एव चैकवस्त्वात्मनाऽस्तित्वस्य संसर्गः स एवान्येषामिति संसर्गेणाभेदवत्तिः ।