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________________ ३४१ सकता है और वह बोल सकता है। पांच मन भार के उठाने के साथ वचन के अभाव की व्याप्ति नहीं है । वचन के अभाव में सन्देह रहता है । सर्वज्ञ के साथ भी न बोलने का नियत सम्बन्ध नहीं है । सर्वज्ञ के न बोलने में भी सन्देह रहता है, सर्वज्ञ मनुष्य बोल भी सकता है। इस पर वादी कहता है- सर्वज्ञता का और वचन का परस्पर विरोध है। जिन अर्थों में परस्पर विरोध रहता है उनमें यदि एक किसी स्थान पर हो तो दूसरा वहाँ नहीं रहता । अन्धकार और प्रकाश परस्पर विरोधी हैं। जहाँ प्रकाश है वहाँ अन्धकार नहीं और जहाँ अन्धकार है वहाँ प्रकाश नहीं । इसी प्रकार जहाँ सर्वज्ञता है वहाँ वचन नहीं और जहाँ वचन है वहाँ सर्वज्ञता नहीं। यह आक्षेप युक्त नहीं है । अन्धकार और प्रकाश का परस्पर विरोध है, इस. लिए प्रेक के होने पर अन्य नहीं रहता। पर सर्वज्ञता और वचन में परस्पर विरोध नहीं है। कहने की इच्छा बोलने का कारण है। अल्पज्ञ पुरुष जब कुछ कहना चाहता है तब बोलता है। कहने की इच्छा के साथ अल्पज्ञ के अल्पज्ञान का विरोध नहीं है, यदि विरोध होता तो अल्पज्ञ को भी कहनेकी इच्छा न होती और वह न बोलता । अल्पज्ञ के समान सर्वज्ञ भी कहने की इच्छा के होने पर बोल सकता है। सर्वज्ञ के ज्ञान का भी कहने की इच्छा और उसके द्वारा उत्पन्न होनेवाले वचन के साथ विरोध नहीं है। यदि आप अल्प ज्ञान के साथ कहने की इच्छा और वचन का विरोध न मानकर सर्वज्ञ के व्यापक ज्ञान के साथ विरोध कहें तो वह युक्त नहीं है । जिनका स्वाभाविक विरोध होता है वे अल्प और महान् दोनों परिमाणों में परस्पर का विरोध
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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