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सपक्ष में निश्चित है इस प्रकार विपक्ष अनित्य, घट आदिमें भी निश्चित है।
जो प्रमा का विषय है उसको प्रमेय कहते हैं । जिस प्रकार आकाश आदि का प्रमात्मक ज्ञान होता है, इसी प्रकार अनित्य घट आदिका भी होता है । इस कारण प्रमेयत्व आकाश आदि सपक्ष नित्यों के समान घट आदि विपक्ष अनित्यों में भी है। घट आदि विपक्ष में प्रमेयत्व की वृत्ति निश्चित है. अतः वह निर्णीत विपक्षवृत्ति है। सपक्ष और विपक्ष दोनों में वृत्ति के निश्चित होनेसे प्रमेयत्व हेतु की नित्यत्व के साथ व्याप्ति है इस प्रकार का निश्चय नहीं है। अन्यथानुपपत्तिरूप व्याप्ति के निश्चित न होनेके कारण प्रमेयत्व हेतु अनेकान्तिक है ।
मूलम्:-दितीयो यथा अभिमतः सर्वज्ञो म भवति वक्तृत्वादिति । अत्र हि वक्तृत्व विपक्षे सर्वज्ञ संदिग्धवृत्तिकम् , सर्वज्ञः किं वक्ताss. होस्विन्नेति सन्देहात् । ___ अर्थः-दूसरा, जैसे अभिमत पुरुष सर्वज्ञ नहीं है, वक्ता होनेसे । यहाँ वक्तृत्व हेतु की विपक्ष सर्वज्ञ में वृत्ति सन्देह से युक्त है । सर्वज्ञ वक्ता होता है अथवा नहीं, इस प्रकार का सन्देह होनेसे ।
विवेचना:-यहाँ पर अल्पज्ञ साधारण पुरुष सपक्ष हैं, वे वक्ता है। इस अनुमान का प्रयोक्ता समझता है आजकल जो वक्ता देखा जाता है, वह अल्पज्ञ है-इसलिये जो अल्पज्ञ