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________________ "१७८ 'नो मुल्य अर्थ है उसका बाघ स्पष्ट है । वचन ज्ञानरूप नहीं है इसलिये वह मुख्य रूप से अनुमान प्रमाण नहीं हो सकता। बक्ता के वाक्य को सुनकर श्राता को ज्ञान उत्पन्न होता है। इसलिये वचन श्रोता के ज्ञान का कारण है । श्रोता वचन सुनकर अनुमान करता है । अनुमान काय है और पक्ष आदिका बर्चन कारण है । कारणभूत वचन में कार्यवाचक अनुमान शब्द का प्रयोग उपचार है। अन्य पुरुष को अनुमान कराने के लिये वचन अत्यंत समर्थ है। अतः यहाँ वचन में अनुमान का उपचार है। . अथवा कार्य में कारण के उपचार से वचन में अनुमान का व्यवहार है। वक्ता हेतु से साध्य को स्वयं जानता है। इसलिये उसका ज्ञान स्वार्थानुमान है। इसके अनन्तर 'वह मुझे जिस प्रकार हेतु से ज्ञान हुआ है इस प्रकार श्रोता को भी उत्पन्न हो' इस बुद्धि से वचन का प्रयोग करता है । इस प्रकार वक्ता का स्वार्थानुमानरूप ज्ञ न वचन में कारण है । 'कार्यरूप वचन में कारण वाचक अनुमानशब्द का प्रयोग है । ...वक्ता जब अनुमान का प्रयोग करता है तब मैं कहता हं इसलिये उसके ऊपर विश्वास करके श्रोता इस अथं को जाने इस अभिप्राय से पक्ष और हेतु को नहीं बोलता। वक्ता की इच्छा है अनुमान द्वारा श्रोता को ज्ञान हो। केवल विश्वास से ज्ञान उत्पन्न करने के लिये वक्ता की इच्छा नहीं है। श्रोता के जान की उत्पत्ति में व्याति सहित हेतु का प्रति. पादक,वचन कारण है । इस प्रकार परके लिये वचन है, अतः पराये कहा जाता है। पक्षस्य विवादादेव गम्यमानत्वादप्रयोग इति सौगतः,
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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