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मूलम-वस्तुनम्तु ग्वशः प्रसिद्धपदार्थाऽस्तिवनास्तिस्वसाधन मेचितम् । अत एव "असतो नयि गिसेहो" [विशंषा गा०१५७४ इत्यादि भाष्पग्रन्थे ग्वरविषाणं नास्तोत्यत्र 'खरे विषाणं नास्ति' इत्येवार्थ उपपादितः ।
अर्थः-वास्तव में तो खंड खंडरूप से प्रसिद्ध पदार्थों के अस्तित्व और नास्तित्व का साधन ही उचित है। इसी कारण 'असत् का निषेध नहीं' इत्यादि भाष्यग्रन्थ में खर का विषाण नहीं इस स्थल में खर में विषाण नहीं इसी अर्थ का प्रतिपादन है ।
विवेचना:-जब धर्मो विकल्प से प्रसिद्ध कहा जाता है तब खंड खंडरूप से बस्तु की प्रसिद्धि माननी चाहिये । विशेषावश्यक भाष्यकार खर का विषाण नहीं इस वाक्य के भर्थ को जब प्रतिपारित करते हैं तब खर विषाण नामक भखंड अर्थ के निषेध का निरूपण नहीं करते। और शशीयस्व से विशिष्ट शग के अभाव को भी नहीं कहते । किन्तु शश में शग के निषेध को कहते हैं। खर एक खंड है और शुग दूसरा खड है, दोनों खंड प्रसिद्ध हैं । खर मधिकरण है उसके साथ शग का संबंध नहीं है। जिस प्रकार भूतल प्रसिद्ध है और घट प्रसिद्ध है । यदि किसी भूतल में घट न दिखाई दे तो भूगल घटाभाववाला है इसी प्रकार कहा जाता है । इसी प्रकार खरप्रसिद्ध है पौर शुग प्रसि ध है । खर के स.प ३ग का संबंध