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ज्ञान-विशिष्ट-वैशष्ट यावगाही होता है । इस प्रकार के ज्ञान का कारण विशेषणतावच्छेदक प्रकारक निश्चय होता है। विशेषण में जो विशेषण है वह विशेषणतावच्छेदक कहा जाता है । जब विशेषणतावच्छेदक किसी निश्चय में प्रकार रूप से प्रतीत होता है तब वह निश्चय विशेषणतावच्छेदकप्रकारक कहा जाता है।
प्रकृत में अभाव विशेष्य है उसमें विशेषण शंग है और उममें विशेषण शशीयत्व है। अतः वह विशेषणतावच्छेदक है 'शग शशीय है -इस आकारवाला निश्चय विशेषणता. वच्छेदक कारक है । कारण, शशीयत्व यहां प्रकाररूप में प्रतीत होता है शंग शशीय है। इस वाक्य के द्वरा इस प्रकार का निश्चय यदि न हो तो शशीयत्वविशिष्ट शग से विशिष्ट अभाव का ज्ञान नहीं हो सकता । शीयत्वविशिष्ट शग प्रतियोगिता संबंध से अभाव में प्रकार रूप से प्रतीत होता है। शशश ग नहीं है' इस वाक्य के द्वारा इस प्रकार का शाब्दवोध होता है और वह विशिष्ट के वैशिष्ट्य का बोध है । जब श ग शशीय है अथवा नहीं इस प्रकार का संदेह होता है अथवा मब शंग शशीय नहीं इस प्रकार का निश्चय होता है. तब शग शशीय है इस प्रकार का बाध निश्चय नहीं हो सकता और उस काल में शशशग नहीं है यह वाक्य उक्त रीति से विशिष्ट वैशिष्ट्य के बोध को उत्पन्न नहीं कर सकता।
अनुमिति में भी शशीयत्व से विशिष्ट शंग रूप विशेष्य में नास्तित्व की प्रकार रूप से प्रतीति नहीं हो सकती । विशिष्ट में जो वैशिष्ट्य है वह विशिष्ट-वंशिष्ट्य कहा जाता है।