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अथ:-उसका इस प्रकार का वचन युक्त नहीं है इसलिए उसको चुप रहना पड़ेगा। विकल्पसिद्ध धर्मी की यदि प्रसिद्धि न हो तो उसका निषेध भी न हो सकेगा।
विवेचना:-आप कहते हैं धर्मो विकल्प से नहीं सिद्ध होता। यदि किसो भो रोति से विकल्प द्वारा सिद्ध नहीं है तो आप-"विकल्पसिद्ध धर्मी नहीं है, कारण, उसके लिये कोई प्रमाग नहीं है ।" इस प्रकार का प्रयोग नहीं कर सकेंगे । अनुमान के इस प्रयोग में जिसके असत्त्व की सिद्धि के लिये आप हेतु कहते हैं वह धर्मों भी विकल्प सिद्ध है। आपके अनुसार आपके हेतु में भी आश्रया. सिद्धि दोष होगा । इस अनुमान में धर्मी प्रमाण सिद्ध नहीं है । आपका अनुमान असत्त्व का साधक है । उसका धर्मी यदि प्रमाण सिद्ध हो तो प्रतिवादी के अनुमान में आप जिस आश्रयासिद्धि को कहते हैं उसके साथ इस वचन का विरोध होगा । प्रतिवादी सर्वज्ञ को विकल्पतिद्ध धर्मों के रूप में कहता है । आप भी इस अनुमान में निषेध के लिये उसी. को धर्मोरूप में कहते हैं । इस रोति से आपके अनुमान का धर्मी भी विकल्प से सिद्ध है।
यदि आप कहते हैं-मैं विकल्पसिद्ध 'धर्मों का विधान अथवा निषेध नहीं करता, है भो नहीं कहता और नहीं भी नहीं कहता ।' तो यह वचन युक्त नहीं है । विधान और निषेध परस्पर के अभावरूप हैं । विधि का निषेध निषेध है, निषेध का निषेध विधि है। दोनों का निषेध नहीं हो सकता। जब वादो सर्वज्ञ की सिद्धि के लिये बाधक प्रमाणों