SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५५ पर्वत में वह्नि सिद्ध करना चाहता है । सामान्य वह्नि सिद्ध है। उसकी सिद्धि के लिये इच्छा नहीं हो सकती । पर्वत विशिष्ट बह्नि यदि साध्य हो तो दृष्टान्त में उसकी व्याप्ति नहीं है रसाई घर आदि में धूम और वह्नि की व्याप्ति का ज्ञान होता है और पर्वत में धूम के ज्ञान से पर्वत विशिष्ट बह्नि को सिद्धि होती है इस प्रकार बाधक प्रमाण के अभाव रूप हेतु और सस्वरूप साध्य की व्याप्ति का ज्ञान होता है और सर्वज्ञ धर्मो में बाधक प्रमाणों के अभावरूप हेतु के ज्ञान से सर्वज्ञरून धर्मो को सत्ता सिद्ध होती है । जिस प्रकार पर्वत विशिष्ट बह्नि के साथ धूम की व्याप्ति का ज्ञान आवश्यक नहीं हैं। उम्र प्रकार सर्वज्ञ विशिष्ट सत्ता के साथ बाधक प्रमाणों के अभावरूप हेतु की व्याप्ति आवश्यक नहीं है सत्त्व मात्र के साथ व्याप्ति युक्त बाधक प्रमाणों का प्रभाव रूप हेतु जहाँ दिवाई देता है वहाँ ही सत्व को सिद्ध करता है । यहां यदि बौद्ध प्रमाणसिद्ध धर्मो के साथ विकल्प सिद्ध धर्मो की समानता का निषेध करने के लिये कहे'पवंत रूप धर्मो को वादी और प्रतिवादी दोनों स्वीकार करते हैं। इसलिये वहाँ वह्नि को सिद्धि हो सकती । परन्तु सर्वज्ञ को प्रतिबादी नहीं स्वीकार करता, अतः उसमें सस्वरूप धर्म की सिद्धि नहीं हो सकती" तो यह कथन युक्त नहीं, वादी और प्रतिवादी पर्वत को जिस कारण से सिद्ध मानते हैं उसका विचार करना चाहिये । पर्वत प्रत्यक्ष से सिध है इसलिये उसको सिद्ध कहा जाता है। सिद्ध पर्वत में वह्नि साध्य हो सकती है । सर्वज्ञ यद्यपि प्रत्यक्ष से सिद्ध नहीं, परन्तु विकल्प से सिद्ध है, अतः उसकी सत्ता
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy