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किसी प्रमाण से पर्वत में वहि न के अभाव को नहीं जानता। उसको पर्वत में वहिन के सिद्ध करने की इच्छा है। इमलिये वहिन उस पुरुष की अपेक्षा से साध्य है । पराये अनुमान में वादी और प्रतिवादी की व्यवस्था है अतः अप्रतीत विशेषण प्रतिवादो की अपेक्षा से है, प्रतिवादी साध्य को स्वीकार महीं करता अत: वादी सिद्धि के लिये अनुमान का प्रयोग करता है । वादी की अपेक्षा से परार्थ अनुमान में अप्रतीत विशेषण नहीं है । वह साध्य अर्थ का प्रतिपादक है । जो अर्थ के स्वरूप को नहीं जानता वह प्रतिपादन नहीं कर सकता । प्रतिवादो प्रतिपाद्य है। साध्य अर्थ के विषय में उसका अज्ञान हो सकता।
अर्थ का निश्चय जिस प्रकार साध्य भाव का विरोधी है। इस प्रकार प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों का विरोध साध्य भाव का विरोधी है। जो मनुष्य वहिन को उष्ण स्पर्श से रहित सिद्ध करने की इच्छा करता है वह इस रोति से अनुमान का प्रयोग करता है-वहिन उष्ण स्पर्श से रहित है, कारण वह उत्पन्न होती है, इस प्रकार के प्रयोग करनेवाले का साध्य वास्तव में साध्य नहीं है । वहिन में उष्ण स्पर्श प्रत्यक्ष से सिद्ध है, अत वहां उष्ण स्पर्श का अभाव प्रत्यक्ष से विरुद्ध है । जो मनुष्य इस प्रकार का प्रयोग करता है उसको उष्ण स्पर्श का अभाव का निश्चय नहीं है वह उसको सिद्ध करने की इच्छा करता है, अतः अप्रतीत और अभीप्सित है परन्तु प्रत्यक्ष से निषिद्ध है । अतः साध्य नहीं हो सकता।
मलम्:-कथायां शङ्कितस्यैव साध्यस्य साधनं युक्तमिति कश्चित