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________________ ૨૨ से वह उत्पन्न नहीं हो सकता। इस स्वभाव के कारण धूम जिस देश में प्रतीत होता है, वह देश साध्य अग्नि की अनुमिति में धर्मारूप से प्रतीत होता है। बिब प्रतिबिंब रूप कार्य-कारणों का जो स्वभाव है उससे विलक्षण स्वभाव धूम और अग्निरूप कार्य-कारणों का है। इस स्वभाव भेद के कारण धूम जिस देश में प्रतीत होता है, उस देश में साध्यवहिन की अनुमिति कराता है। धूम की पक्षधर्मता इस में कारण नहीं है इस विषय में पक्षधर्मता अन्यथा सिद्ध है। यरि पक्षमता नियम से कारण हो तो जलचन्द्र से आकाश चांद की अनुमिति नहीं होनी चाहिये। ध्यान रखना चाहिये धूम से अग्नि की अनुमिति में पर्वत की प्रतीति व्याप्ति के अवच्छेदक रूप में नही हो सकती समस्त देश काल के साध्य-साधनों की व्याप्ति का ज्ञान जब होता है तब धूम के जितने अधिकरण हैं उन में पर्वत अनुगामी रूप से प्रतीत नहीं होता। इसलिये वह अवच्छेदक नहीं हो सकता। मूलम्:-यत् अन्ताप्त्या पक्षीयसाध्यसाधनसम्बन्धग्रहात् पक्षसाध्यसंसर्गभानम् , तदुक्तम्-"पक्षीकृत एव विषये माधनस्य साध्ये व्याप्तिरन्ताप्तिः, अन्यत्र तु बहिाप्ति (प्र. न. ३, ३८) इति, अर्थः-कुछ लोग कहते हैं-अन्तर्व्याप्ति के द्वारा पक्ष में वतमान साध्य-साधनों के संबंध का ज्ञान होता है। उसके द्वारा पक्ष और साध्य के संसर्ग का ज्ञान
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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