SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५ (३) अमर कोशकार ने भी न्याय शास्त्र के प्राचीन नाम आन्वीक्षिकी को तर्कविद्या का वाचक कहा है। आन्वीक्षिको दण्डनीतिस्त विद्यार्थशास्त्रयोः। (अमर० १.६.५१) इसकी सुधा व्याख्या में भानुजी दीक्षित कहते हैं एतौ द्वौ क्रमात्तकविद्यायां न्यायरूपायां अर्थशास्त्रे च वर्तेते। (४) अर्वाचीन काल में न्याय शास्त्र के लिये तर्क पद का प्रयोग पाया जाता है । उपाध्यायजी के पूर्ववर्ती बौद्ध विद्वान मोक्षाकर गुप्त ने बौद्ध मत के अनुसार प्रत्यक्ष और अनुमान का निरूपण करने के लिये तर्क भाषा नामक ग्रथ की रचना की है। बौद्ध न्याय में भी तर्क अनुमान मुख्य है। प्रत्यक्ष का स्वरूप भी तर्क द्वारा निश्चित होता है। इसलिये प्रत्यक्ष अनुमान दोनों का प्रतिपादक होने पर भी ग्रन्थ का नाम तर्कभाषा है । मोक्षाकर गुप्त बौद्ध इतिहास के ज्ञाताओं के अनुसार ईसा को ग्यारहवीं शताब्दी के अन्तिम भाग में थे । मोक्षाकर गुप्त का तर्क भाषा' ग्रन्थ सक्षेप से प्रमाणों का निरूपण करता है। (५) जैमिनीय पूर्व मीमांसा भी न्याय कहा जाता है और तर्क का न्याय के अर्थ में प्रयोग है इसलिये पूर्व मीमांसा के लिये भी तर्क पद का प्रयोग हुआ है । व्याकरण, मीमांसा, न्याय में अप्रतिहत ज्ञान को प्रकाशित करते हुए दसवीं सदी के उदयन कहते हैं: वयमिह पदविद्यां तर्कमान्वीक्षिकों वा यदि पथि विपथे वा वर्तयामः स पन्थाः । उदयति दिशि यस्यां भानुमान् सैव पूर्वा न हि तरणिरुदीते दिक पराधीन वृत्तिः।।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy