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________________ २०६ .. इसके अनन्तर अग्नि का उपलम्भ और धूम का उपलम्भ ये दो उपलम्भ है । इसके उत्तरकाल में अग्नि का अनुपलम्भ और इसके अनन्तर धूम का अनुपलम्भ ये दो अनुपलम्भ है । इस रीति से प्रत्यक्ष दो उपलम्भ और तीन अनुपलम्भ मिलकर दो उपलम्भ और तीन उपलम्भों से अर्थात् उपलम्भ और अनुपलम्भ के पंचक से व्याप्ति का ज्ञान होता है। कहा है-'प्रथमकाल में धूम का अनुपलम्भ है और उत्तरकाल में अग्नि का ज्ञान और धूम का ज्ञान है, इसके अनन्तर अग्नि का और धूम का अनुपलम्भ है । इस रीति से प्रत्यक्ष और अनुपलम्भ रूप पाँच कारणों के द्वारा व्याप्ति का ज्ञान होता है।' विवेचना:--बौद्ध कहते हैं-उपलम्भ और अनुपलम्म. रूप प्रत्यक्ष से कार्य कारण भाव का ज्ञान होता है। अग्नि कारण है और कार्य धूम है। कार्य कारण के साथ नियत होता है यदि कार्य कारण के साथ नियत न हो तो वह कारण की अपेक्षा से रहित हो जायगा । यदि कार्य कारण से निरपेक्ष हो जाय, तो वह सदा विद्यमान अथवा सदा अविद्यमान हो जाना चाहिये। किसी काल में विद्यमानता और किसी काल में अविद्यमानता अपेक्षा से ही हो सकती है । इस रीति के द्वारा समस्त साध्य साधनों में व्याप्ति का ज्ञान प्रत्यक्ष और भनुपलम्भ इन दोनों से हो सकता है। .
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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