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________________ २. योग्यता के बल से अपने विषय के ज्ञान को उत्पन्न करता है अपने विषय के ज्ञान में जो आवरण है उसका और वीर्यान्तराय का क्षयोपशम तर्क का योग्यता विशेष है। प्रत्यक्ष को उत्पत्ति में इन्द्रिय आदि जिस प्रकार योग्यता के सहकारी कारण हैं इस प्रकार उपलम्भ और अनुपलम्भ तक की उत्पत्ति । में सहकारी हैं। अर्थके साथ इन्द्रियों का जो संबंध है उसको बिना जाने जिस प्रकार प्रत्यक्ष उत्पन्न होता है इस प्रकार अपने विषय के साथ जो संबध है उसको बिना जाने तर्क प्रवृत्त होता है इस दशा में अनवस्था दोष नहीं है । मूलम्:-प्रत्यक्षपृष्टभाविविकल्परूपत्वान्नायं प्रमा. मिति बौडाः। अर्थः-बौद्ध कहते हैं-तर्क प्रत्यक्ष के अनन्तर होने वाला विकल्परूप ज्ञान है, इसलिये प्रमाण नहीं है। विवेचना:-बौद्धमत के अनुसार विद्यमान अर्थ का जो ज्ञान उत्पत्र होता है वह प्रमाण है जो जान कल्पना के बल से उत्पन्न होता है वह सविकल्पक कहा जाता है और वह प्रमाण होता नहीं। मरुस्थल में जब सूर्य के प्रचंड ताप में जल दिखाई देता है, तब वह जल कल्पना से प्रतीत होता है। परन्तु वह ज्ञानका सत्य आलंबन नहीं है। सत्य आलंबन से रहित होने के कारण मरुस्थल की किरणों में जल ज्ञान अप्रमाण होता है। तकं ज्ञान का आलंबन भी सत्य नहीं है। साध्य वहिन और साधन धूम का ज्ञान प्रत्यक्ष द्वारा होता है। तर्क कहता है कि-"यदि बह्नि न हो-तो धूम नहीं होता। वह्नि के होने पर भी वह कल्पना करता है-यदि यहाँ वहिन न होती
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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