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________________ १६६ असंभव है। धूमत्व सामान्य का संबंध समस्त धूम व्यक्तियों के साथ है कुछ एक व्यक्तियों के साथ नहीं-इसका कारण क्या ? यह प्रश्न यदि हो, तो तर्क की अपेक्षा होगी। समस्त धूम व्यक्तियों के साथ घूमत्व का संबंध यदि न हो, तो धूपस्व सामान्यरूप नहीं हो सकता। अनेक व्यक्तियों में वृत्ति सामान्य का आवश्यक स्वरूप है। यदि तर्क के बिना सामा न्य समस्त व्यक्तियों के साथ अपने संबंध को नहीं सिद्ध कर सकता तो तर्क को ही प्रमाण मानना चाहिए । इस विषय में सामान्य स्वरूप संनिकर्ष की कल्पना युक्त नहीं है। समस्त साध्य-साधन व्यक्तियों का अस्पष्ट ज्ञान भी इस विषय में इन्द्रियों को असमर्थ सिद्ध करता है। इन्द्रियों से जो ज्ञान होता है वह स्पष्ट होता है । जितने ध्म हैं वे सब जब वह्नि होती है तभी होते हैं वह्नि के बिना नहीं होते । इस प्रकार का ज्ञान अस्पष्ट स्वरूप का है । इसलिये यह ज्ञान प्रत्यक्ष से भिन्न तर्क स्वरूप है। मूलम-वाच्यवाचकभावाऽपि तवावगम्यते तस्यैव सकलशब्दार्थगोचरत्वात् । प्रयो जकवृद्धोक्तं श्रुत्वा प्रवर्तमानस्य प्रयोज्यवद्धस्य चेष्टामवलोक्य तत्कारणज्ञानजनकतां शब्देऽवधारयन्तो(यतोऽन्त्यावयवश्रवण-पूर्वाग्यवस्मरगोपजनितवर्णपदवाक्यविषयसङ्कलनात्मकपत्य. भिज्ञानवतआवापोद्वापाभ्यां सकलव्यक्त्युपसंहारेण च वाच्यवाचकभावप्रतीतिदर्शनादिति । अर्थ-वाच्य वाचक भाव भी तर्क द्वारा प्रतीत
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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