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________________ १८९ ध्यापक व्यक्तियों के साथ है। इन समस्त व्यक्तियों के साथ इन्द्रियों का संबंध नहीं हो सकता। इसलिए इन्द्रिय समस्त व्यक्तियों का ज्ञान नहीं कर सकती जब पहली बार प्रत्यक्ष होता है तब पुरोवर्ती देश में जो अग्नि दिखाई देती है उसके साथ धूम का संबंध प्रतीत होता है । इतने से व्याप्ति का ज्ञान नहीं हो सकता । किसी एक नियत व्यक्ति के साथ व्याप्ति नहीं हो सकती। समस्त व्यक्तियों को लेकर व्याप्ति होती है । पहली बार के प्रत्यक्ष में इन्द्रियों का सबंध समस्त साध्य और साधन व्यक्तियों के साथ नहीं होता । इसलिये समस्त अग्नियों के साथ धूम के सम्बन्ध का प्रत्यक्ष नहीं हो सकता । वह्नित्व और धूमत्व समस्त वह्नि और धूम व्यक्तियों के ग्राहकरूप हैं. परन्तु इम ग्राहकरूप का प्रत्यक्ष नहीं हो सकता । पुरोवर्ती देश और वर्तमानकाल के साथ सबंधवाले स्वरूप का हा प्रत्यक्ष होता है। __ आप कहते हैं अकेला प्रत्यक्ष व्यापकरूप के साथ वह्नि त्व और धूमत्व के ज्ञान में यद्यपि असमर्थ है तो भी अनेक बार के दर्शनों द्वारा जाने हुए अन्वय और व्यतिरेक की सहायता को पाकर व्याप्ति के व्यापक रूप में वह्नित्व और धूमत्व को जान सकता है, यह कथन भी अयुक्त है। सहायकों की सहायता को पाकर साधन अपने विषय में ही प्रवृत्ति कर सकता है जो अपना विषय नहीं है उसमें प्रवृत्ति नहीं होती । दोपक की सहायता लेकर आँख अपने विषय शुक्ल-नील आदि रूप में प्रवृत्त होती है। रस गंध आदिमें उसकी प्रवृत्ति नहीं होती। अतीत अनागत आदि अर्थ प्रत्यक्ष के विषय नहीं हैं, इसलिए अन्वय और व्यतिरेक की सहायता पाकर भी प्रत्यक्ष व्याप्ति का ज्ञान नहीं कर सकता । सहकारी कारण इस
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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