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________________ १८५ विवेचना:-बाह्य इन्द्रियों के द्वारा जब अर्थ का प्रत्यक्ष होता है तब "मैं प्रत्यक्ष करता हूँ"-इस प्रकार की प्रतीति होतो है । जब धूम से अग्नि का अनुमान करता है, तब 'मैं अनुमान करता हूँ' इस प्रकार की प्रतीति होती है । इस प्रकार की प्रतीतियाँ ज्ञानों के स्वरूप के भेद में प्रमाण हैं । "मैं पहचानता हूँ" यह प्रतीति प्रत्यक्ष और अनुमान की प्रतीति से भिन्न है। इसलिए ये सब ज्ञान प्रत्यभिज्ञान रूप हैं। [तक का निरूपण] मलम:-सकलदेशकालाद्यवच्छेदेन साध्यसाधनभावादिविषय ऊहस्तर्कः, यथा 'यावान् कश्चिदधूमः स सर्वो वहौ सत्येव भवति, वहिनं विना वा न भवति' 'घटशब्दमात्र घटस्य वाचकम्' 'घटमात्रं घटशब्दवाच्यम्' इत्यादि । ___ अर्थ-समस्त देश और काल आदिके साथ साध्यसाधनभाव आदि विषय को प्रकाशित करनेवाला ज्ञान 'तर्क है । उदाहरणः-जो कोई धूम है वह जब अग्नि हो तभी होता है और अग्नि न हो तो नहीं होता, जो जो घट पद है वह घट का वाचक है, जो जो घट है वह वह घट पद का वाच्य है-इत्यादि । विवेचना:-तीन काल में जो साध्य और साधन हैं उनका संबंध व्याप्ति है। व्याप्ति के विषय में जो ज्ञान है वह तर्क है । साध्य और साधन का किसी भी प्रमाण के द्वारा मान व्याप्ति के ज्ञान को उत्पन्न करता है । जिन वस्तुओं
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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