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________________ १७५ गाय का स्वरूप होता है। जब गाय का स्मरण करके गवय से विशिष्ट सादृश्य का ज्ञान होता है, तब गाय में वर्तमान सादृश्य गवय से निरूपित होता है। गवय का प्रत्यक्ष ज्ञान है, अतः सादृश्य का भी प्रत्यक्ष है । गाय का स्मरण है इस रीति से सादृश्य के प्रत्यक्ष और गाय के स्मरण से यद्यपि ज्ञान होता है तो भी सादृश्य से विशिष्ट गाय का अथवा गाय में वर्तमान सादृश्य का ज्ञान प्रत्यक्ष अथवा स्मरण नहीं हो सकता। इस विशिष्ट अर्थ का ज्ञान उपमान प्रमाण से होता है। मूलम्-तन्नः दृष्टस्य सादृश्यविशिष्टपिण्डस्य स्मृतस्य च गोः सङ्कलनात्मकस्य 'गोसदृशो गवय.' इति ज्ञानस्य प्रत्यभिज्ञानताऽनतिक्र. मात् । अर्थः-वह कथन युक्त नहीं, सादृश्य से विशिष्ट पिंड दिखाई देता है और गाय का स्मरण होता है। पीछे इस प्रत्यक्ष और स्मरण का संकलन होता है । गवय गाय के समान है-यह ज्ञान संकलन रूप है । प्रत्यभिज्ञान का मुख्य चिन्ह संकलन है, अतः "गवय गाय के समान है" यह ज्ञान प्रत्यभिज्ञान से भिन्न नहीं । विवेचना:-गवय के साहश्य से विशिष्ट गाय का अथवा जिसका स्मरण हुआ है उस गो से विशिष्ट गवय में वर्तमान सादृश्य का ज्ञान केवल प्रत्यक्ष अथवा केवल स्मरण से नहीं
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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