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________________ १६७ स्मरण के बिना "वही यह फल है" इत्यादि रूप से प्रथम काल में ज्ञान होना चाहिए। ___ मूलम्:-अथ पुनदर्शने पूर्वदर्शनाहितसंस्कारप्रषोधोत्पन्नस्मतिसहायमिन्द्रियं प्रत्यभिज्ञानमुत्पादयतीत्युच्यते। ____ अर्थः-एक वस्तु जब फिर देखी जाती है, तब पूर्वकाल के दर्शन से जो संस्कार उत्पन्न हुआ था उसके जागरण से स्मृति उत्पन्न होती है, इस स्मृति की सहायता लेकर इन्द्रिय प्रत्यभिज्ञान रूप प्रत्यक्ष को उत्पन्न करती है। विवेचना:-जब अर्थ के साथ अकेली इन्द्रिय संबंध करती है, तब वर्तमानकाल में रहनेवाले अर्थ के विषय में प्रत्यक्ष ज्ञान को उत्पन्न करती है। स्मृति को सहायता के बिना इन्द्रिय अतीतकाल के अर्थ के विषय में प्रत्यक्ष ज्ञान को नहीं उत्पन्न कर सकती । स्मृति से युक्त इन्द्रिय अर्थ के साथ पूर्वकाल में संबंध को भी प्रकाशित कर सकती है। इन्द्रियों से उत्पन्न ज्ञान का प्रत्यक्ष भाव स्वभाव है । सहायता लेनेसे वस्तु का स्वभाव दूर नहीं होता । स्मृति के बिना इन्द्रिय का जो स्वभाव है, वह स्मृति के सहायक होनेसे दूर नहीं होता। अतः अकेली इन्द्रिय के समान स्मृति सहित इन्द्रिय भी प्रत्यक्ष को हो उत्पन्न करती है। मूलम्:-तदनुचितम् , प्रत्यक्षस्य स्मृतिनिरपेक्षत्वात् । अन्यथा पर्वते वहिज्ञानरयापि
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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