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तो जाति का प्रत्यभिज्ञान होता है । इस प्रकार की जाति के प्रत्यभिज्ञान में जो जाति होती है । वह तिर्यक सामान्य कही जाती है। पहले किसी मनुष्य ने एक आम्रवृक्ष को देखा। वही मनुष्य कुछ समय के बीत जाने पर अन्य आम्रवृक्ष को देखे तो उसको यह आम्र भी उसो आन्न जाति का है, इस प्रकार का प्रत्यभिज्ञान होता हैं। देखनेवाला दोनों आम्रों के व्यक्तिभेद को जानता है और उस जाति को एक समझता है। यह प्रत्यभिज्ञान वृक्षत्वरूप तिर्यक्सामान्य को प्रकाशित करता है।
जब कोई मनुष्य एक स्थान पर आम्रवृक्ष को देखकर फिर तीन चार वर्ष के अनन्तर उसी आम्रवृक्ष को देखे तो-यह वही आम्र वृक्ष है, इस प्रकार का प्रत्यभिज्ञान उत्पन्न होता है । यह प्रत्यभिज्ञान आम्र के विषय में है तो भी पहले उदाहरण के प्रत्यभिज्ञान से भिन्न है । पहले उदाहरण में दो आम्रवृक्ष थे । इस उदाहरण में आम्र वृक्ष वही एक है। इसलिए यहां पर तिर्यसामान्य का ज्ञान नहीं है । तीन वर्ष पहले जो आम्र था उसका आकार छोटा था । अब उसका आकार बड़ा हो गया है। लंबाई चौड़ाई अधिक हो गई है । शाखा-पत्र आदिके पर्यायों में भेद हो जाने पर भी वृक्ष रूप एक द्रव्य-प्रतीत होता है । इसलिए यहां पर वृक्षरूप ऊर्ध्वता सामान्य का प्रत्यभिज्ञान है। यहां पर व्यक्ति एक है इसलिए तिर्यक् सामान्य प्रत्यभिज्ञान का विषय नहीं है।
जब कोई भैस को जानने की इच्छा करे और अन्य मनुष्य कहे यह सामने गौ आदिका झुड है इसमें गौओं