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________________ १४५ 4 अर्थ :- प्रत्यक्ष आदि जिस प्रकार अविसंवादक हैं. इस प्रकार स्मरण भी अविसंवादक है - अतः अप्रमाण नहीं । विवेचन : गौतमीय न्याय के अनुगामी वैशेषिक बौद्ध और मीमांसक स्मृति को प्रमाण नहीं मानते उनके मत का निराकरण करने के लिए कहते हैं. जिस हेतु से प्रत्यक्षादि प्रमाण है, वह हेतु स्मरण में भी है इसलिए स्मरण को प्रमाण होना चाहिए | अविसंवाद के कारण प्रत्यक्ष अनुमान श्रादि प्रमाण कहे जाते हैं जिस अर्थ का ज्ञान हुआ है उस प्रथं की प्राप्ति अथवा उस अर्थ में अन्य प्रमाण की प्रवृत्ति अविसंवाद है । प्रत्यक्ष अथवा अनुमान से जब आम्रफल आदि का ज्ञान होता है तब प्रवृत्ति होने पर आम्रफल की प्राप्ति होती है । प्राप्ति के कारण प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण हैं । प्रत्यक्ष से जो अर्थ निश्चित है उस में अनुमान आदिकी प्रवृत्ति होतो है, और अनुमान आदिसे जो निश्चित होता है उसमें प्रत्यक्ष की प्रवृत्ति होती है । इस रीति से प्रमाण परस्पर की पुष्टि करते हैं । दो प्रकार का यह अविसंवाद अर्थात् अर्थ प्राप्तिरूप और अन्य प्रमाणों का प्रवृत्ति रूप स्मरण में भी है । जिस स्थान में आम्रफल के होने की स्मृति हती है, उस स्थान पर जाकर मनुष्य उसको प्राप्त कर लेता है । उस स्थान में ग्राम्रफल प्रत्यक्ष हो जाता है। इस प्रकार अर्थ की प्राप्ति और अन्य प्रमाण की प्रवृत्ति रूप अविसंवाद स्मृति में भी है। 1 मूलम्:- अतीततत्तांशे वर्तमानत्व विषयत्वादप्रमाणमिदमिति चेत्, नः सर्वत्र विशेषणं विशेच्यकालभानानियमात् ।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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