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आदि चक्षु के सहकारी हैं। इनसे चक्षु की देखनेकी शक्ति बढ़ जाती है । इससे चक्षु पहले जिन स्थूल अर्थों को देखती थी उनकी अपेक्षा अब सूक्ष्म अर्थों को स्पष्ट रूप से देख सकती है। परंतु सहायता के कारण रस अथवा स्पर्श आदि को नहीं देख सकती । रस स्पर्श आदि चक्षु के विषय नहीं हैं। आत्मा पुख आदि मन के विषय हैं। समाधि से उत्पन्न धर्म की सहायता को प्राप्त करके मन, आत्मा आदि को अधिक स्पष्ट भाव से जान सकता है। रूप रस आदिको मन समाधि की सहायता से नहीं जानता । रूप रस आदि. के समान आत्मा आदिसे भिन्न विषय भी मन के विषय नहीं है। अत: मन समाध की सहायता से समस्त विषयों में ज्ञान की उत्पत्ति नहीं कर सकता। जब सब प्रकार से कर्म क्षीण हो जाता है, तभी आत्मा का स्वाभाविक जान समस्त विषयों को प्रकाशित करता है।
मलम् -'कवलभोजिनः कैवल्यं न घटते' इति दिकपटः,
अर्थः-दिगम्बर कहता है, कालाहारी को केवलज्ञान नहीं उत्पन्न हो सकता।
मूलम-तर, आहारपर्याप्त्यसातवेदनीयो. दयादिप्रसूतया कवलभुक्त्या कैवल्याविरोधात् घातिकर्मणामेव तद्विरोधित्वात्। ___अर्थः-यह युक्त नहीं । आहार पर्याप्ति नाम कर्म
और असातवेदनीय कर्म के उदय आदि कारणों से कवलाहार उत्पन्न होता है । केवलज्ञान के साथ