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________________ १२५ मूलम्-तत्रोत्पत्तिक्षेत्रादन्यत्राप्यनुवर्तमा. नमानुगामिकम् , भास्करप्रकाशवत्, ग्रथा . भास्करप्रकाशः प्राच्यामाविर्भूतः प्रतीचीमनुसरत्यपि तत्रावकाशमुद्योतयति, तथैतदप्ये. कत्रोत्पन्नमन्यत्र गच्छतोऽपि पुंसो विषयमव. भासयतीति । _____ अर्थ—सूर्य के प्रकाश के समान जो ज्ञान अपनी उत्पत्ति के क्षेत्र से भिन्न क्षेत्र में ज्ञाता के साथ रहता है वह अवधिज्ञान आनुगामिक कहलाता है । जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश पूर्व दिशा में प्रकट होता है और सूर्य जब पश्चिम दिशा में जाता है तब भी वहाँ के क्षेत्र को प्रकाशित करता है इसी प्रकार आनुगामिक ज्ञान जिस स्थान पर पुरुष को उत्पन्न होता है उस स्थान से अन्य स्थान में जाने पर भी विषय को प्रकाशित करता है। मूलम्-उत्पत्तिक्षेत्र. एव विषयावभासकमनानुगामिम , प्रश्नादेशपुरुषज्ञानवत, यथा प्रश्नादेशः कचिदेव स्थाने वादयितु शक्नोति पच्छ्यमानमर्थम् , तथेदमपि अधिकृत एव स्थाने विषयमुद्योतगितुमलमिति । .
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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