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आकार में जब स्मृति होती है तब अतीत और वर्तमान. काल में वस्तु का जो स्वरूप है उसकी प्रतोति होती है । अतीत और वर्तमानकाल का संबंध अपाय में नहीं प्रतीत होता इसलिए स्मति अपाय से भिन्न है। अपाय ही कालांतर में स्मति रूप को धारण करता है इसलिये स्मृति मतिज्ञान रूप है । परिणामी कारण कालान्तर में भिन्न आकार धारण करता है परन्तु कार्य में वह अनुगत रहता है। दही मक्खन और घी के रूप में दूध हो जाता है। मक्खन के आकार में दध के आकार से भेद है। मक्खन की अपेक्षा घी के प्राकार में अधिक भेद है। न्यून और अधिक भेद के होने पर भी दूध मक्खन में जिस प्रकार अनुगत है इस प्रकार घी में भी अनुगत है। रूपान्तर के होने पर भी दूध मक्खन और घी में जिस प्रकार भेद और अभेद है इस प्रकार अपाय. स्मृति और सस्कार में भेद और अभेद हैं। स्मृति संस्कार के बिना नहीं उत्पन्न हो सकती इसलिए संस्कार आवश्यक है । अपाय का स्वरूप संस्कार में बहुत अव्यक्त है । यदि सम्कार में उपयोग रूप का सर्वथा अभाव हो तो चिर काल के अनन्तर उत्पन्न स्मृति में उपयोगमय रूप की प्रतीति न होनी चाहिये। परन्तु होती है इसलिए संस्कार भी मतिज्ञानात्मक है। इस रीति से अभेद होने पर भी तीन प्रकार की धारणा अपाय से भिन्न है।
मूलम्-नन्वविच्युतिस्मृतिलक्षणो ज्ञानभेदौ गहीतग्राहित्वान्नप्रमाणम् , संस्कारश्च किं स्मतिज्ञानावरणक्षयोपशमो वा, तज्ज्ञानजननशविनर्वा, तद्वस्तुविकल्पो वेति या गतिः १ तत्र- आदापक्षद्वयमयुक्तम् , ज्ञानरूपत्वाभावात्