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________________ ૨૨ धर्म का संबंध करती है । इस लिये निश्चयरूप न होने पर भी निश्चय की दिशा में बढती है, अतः ईहा संशय से भिन्न है। [ अपाय का स्वरूप] मूलम् - ईहितस्य विशेष निर्णयोऽवायः, यथा- 'शब्द एवायम्, ' ' शाङ्ख एवायम्' इति था । , अर्थ - ईहा से जिस अर्थ का ज्ञान हुआ है उसके विशेष का निश्चय अपाय है । जैसे - यह शब्द ही है अथवा यह शङ्ख का ही शब्द है । [ धारणा का स्वरूप] मूलम् - स एव दृढनमावस्थापन्नो धारणा | सा च त्रिविधा- अविच्युतिः, स्मृतिः, वासना च । तत्रैकार्थोपयोगसातस्यानिवृत्तिः अविच्युतिः । तस्यैवार्थोपयोगस्य कालान्तरे 'तदेव' इत्युत्लेखेन समुन्मीलनं स्मृतिः । अपायाहितः स्मृतिहेतुः संस्कारो वासना । अर्थ - अत्यन्त दृढ अवस्था को प्राप्त वही अपाय धारणा कहा जाता है । वह धारणा तीन प्रकार की है- अविच्युति, स्मृति और वासना । उनमें किसी एक पदार्थ के विषय में निरन्तर रहने वाला उपयोग अति है । अर्थ के विषय में उसी उपयोग का I
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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