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________________ विवेचना-समाधान में कहते हैं, कुछ एक क्रियाओं की फल केवल ज्ञान से होता है। जहाँ तीव्र अध्यवसाय होता है वहां इन्द्रिय और अर्थ का संबंध न होने पर भी क्रिया का फल होता है। जागता मनुष्य तीव्र अनुराग के कारण प्रत्यक्ष के समान कामिनी को देखकर जब कल्पना के द्वारा संभोग करता है तब भी वीर्यपात होता है उस काल में कामिनी के साथ संबंध नहीं है। कामुक को छोडकर अन्य कोई मनुष्य कामिनी को नहीं देखता । उस दशा में वीर्यपात का कारण तोव अध्यवसाय ही है। इस रीति से स्वप्न काल में वीर्यपात का कारण तीव्र अध्यवसाय ही है । उस काल में कामिनी के साथ मन का संबंध नहीं होता अतः मन प्राप्यकारी नहीं है। मूलम्-ननु स्त्यानर्धिनिद्रोदये गीतादिक श्रृण्वतो व्यजनाग्रही मनसोऽपि भवतीति चेत्, अर्थ-शंका-स्त्यानधि निद्रा के उदय होने पर गीत आदि सुनते हुए व्यञ्जनावग्रह मन का भी होता है । _ विवेचना-निद्रा की एक विशेष अवस्था का नाम स्त्या. मधि है इस निद्रा में आत्मा की चेतना कुछ अंश में संकुचित और कुछ अश में विकसित होती है । पूर्ण रूप से विकसित नहीं होती। इस निद्रा की दशा में मनुष्य जिस काम को करता है उसको वह समजता है, मैं इस कार्य को स्वप्न में करता हूँ। वह गीत सुनता है इतना ही नहीं इस निद्रा की दशा में मनुष्य कुछ एक पदार्थों को उठाता है और रखता है इन समस्त क्रियाओं को मन से विचार करके करता है । इसके कारण बाह्य विषयों के साथ मन का सबंध सिद्ध होता है, अतः मन प्राप्यकारी है । यदि इन दशाओं में मन का
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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