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________________ ३२. 1 पश्चाध्यायी। डालियों (टहनियों) को तोड़कर ही आम खाऊँगा । पद्मलेश्यावालेने अपने विचारोंके अनुसार कहा कि मैं तो इसके फलोंको ही तोड़कर खाऊंगा । शुक्ललेश्यावालेने आने विचारोंके अनुसार कहा कि तुम तो फलोंके खानेकी इच्छासे इतना २ बड़ा आरंभ करनेके लिये उद्यत हो, मैं तो केवल वृक्षसे स्वयं टूटकर गिरे हुए फलोंको ही बीनकर खाऊंगा । इन्ही लेश्यागत भावोंके अनुसार यह आत्मा आयु और गतियों का बन्ध करता है। जैसी इसकी लेश्या ( भाव ) होती है उसीके अनुसार आयु और गतिका बन्ध इसके होता है । परन्तु सम्पूर्ण लेश्यागत भावोंसे आयुका बन्ध नहीं होता है किन्तु मध्यके आठ अंशो द्वारा ही होता है । अर्थात् लेश्याओंके सब छन्वीस अंश हैं। उनमें मध्यके आठ अंश ऐसे होते हैं जो कि आयु वन्धकी योग्यता रखते हैं। उन्हींमें आयुका बंध होसक्ता है ! बाकीके अंशोंमें नहीं हो सक्ता । ये मध्यके आठ अंश आठ अपकर्ष कालोंमें होते हैं । अपकर्ष नाम घटनेका है अर्थात् मुज्यमान आयुके दो भाग घट नानेपर अवशिष्ट एक भागके प्रमाण अन्तर्मुहूर्त प्रमाण कालका नाम अपकर्षकाल है । इन्हीं कालोंमें आयुबन्धके योग्य लेश्याओंके मध्यके आठ अंश होते हैं । परन्तु जिस अपकर्षमें आयुबन्धके योग्य आठ मध्यम अंशोंमेसे कोई अंश होगा उसी अपकर्षमें आयुका बन्ध होगा औरोंमें नहीं । इसीलिये किसीके आठों अपकर्षों में आयुका बन्ध होसक्ता है, किसीके सब अपकर्षों में नहीं होता किन्तु किसी २ में होता है । किसीके आठों ही अपकर्षों में नहीं होता है । जिसको आठों ही अपकोंमें बन्धकी योग्यता नहीं मिलती हैं उसके आयुके अन्त समयमें एक आवलिका असंख्यातवां भाग शेष रह जाने पर उससे पहले अन्तर्मुहूर्तमें अवश्य आयु बन्ध होता है। दृष्टान्तके लिये-कल्पना करिये एक मनुष्यकी ६५६१ वर्ष की मुज्यमान ( वर्तमान-उदय प्राप्त ) आयु है। उसके पहला अपकर्ष काल २१८७ वर्ष शेष रह जाने पर पड़ेगा। इस कालके प्रथम अन्तर्मुहूर्त में यदि भायुबंधके योग्य आठ मध्यम अंशोंमेंसे कोई अंश हो तो परभवझी आयुका बंध हो सकता है। यदि यहां पर कोई अंश न पड़े तो ७२९ वर्ष शेष रहने पर दूसरा अपकर्ष काल पड़ेगा वहां आयुका बन्ध हो सकता है। यदि वहां भी आयुबंधकी योग्यता नहीं मिली तो तीसरा अपकर्षकाल २४३ वर्ष शेष रह जाने पर पड़ेगा। इसी प्रकार ८१ वर्ष शेष रहने पर चौथा, २७ वर्ष शेष रहने पर पांचवा, ९ वर्ष शेष रहने पर छठा, ३ वर्ष शेष रह जानेपर सातवां और सुज्यमान आयुमें कुल १ : शेष रह जानेपर आठवां अपकर्षकाल पड़ेगा। उन आठोंगस नहीं बंधकी योग्यता हो वहीं पर आयुका बंध हो सकता है। सबोंमें योग्यता हो तो सबोंमें हो सकता है। यदि कहीं भी योग्यता न हो तो मरण समयमें अवश्य ही परभवकी आयुका बंध होता है। इतना विशेष कि जिस अपकर्षमै नेता लेश्याका अंश पड़ता है उसीके अनुसार शुभ या अशुभ आयुका
SR No.022393
Book TitlePanchadhyayi Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakash Karyalay
Publication Year1918
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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