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________________ सुबोधिनी टीका । प्रतिष्ठा करानेका उपदेश - सिद्धानामर्हताञ्चापि यन्त्राणि प्रतिमाः शुभाः । चैत्यालयेषु संस्थाप्य प्राक्प्रतिष्ठापयेत् सुधीः ॥ ७३७ ॥ अध्याय । ] अर्थ - - सिद्ध यंत्र और अर्हन्तोंकी शुभ प्रतिमाओंको चैत्यालयों में स्थापना करके पहले उनकी बुद्धिमान् पुरुषको प्रतिष्ठा करानी चाहिये । भावार्थ - - मन्त्रशास्त्रों में शब्दशक्तिका अपार माहात्म्य बतलाया गया है, जिनप्रतिमाओं में अर्हन्तों की स्थापना मन्त्रों द्वारा ही की जाती है, उन्ही मन्त्रों की शक्ति से वह स्थापना की हुई प्रतिमा पूज्य होजाती हैं, मन्त्रशक्तिकी योजना के लिये ही प्रतिष्ठा कराई जाती है । तीर्थादिककी यात्राका उपदेश - अपि तीर्थादियात्रासु विदध्यात्सोद्यतं मनः । श्रावकः स च तत्रापि संयमं न विराधयेत् ॥ ७३८ ॥ अर्थ - - तीर्थन्दना, आदि यात्राओंके लिये सदा उत्साह सहित मनको रखना चाहिये । परन्तु तीर्थादिककी यात्राओं में भी श्रावक संयमकी विराधना न करै, अर्थात् यात्राओंमें अनेक , विघ्नके कारण मिलनेपर भी वह संयमको सुरक्षित ही रक्खे । " tree जिनबिम्बोत्सव में सम्मिलित होनेका उपदेश - नित्ये नैमित्तिके चैवं जिनबिम्बमहोत्सवे । शैथिल्यं नैव कर्तव्यं तत्वज्ञैस्तद्विशेषतः ॥ ७३९ ॥ अर्थ — जो नित्य नैमित्तिक जिन बिम्ब महोत्सव होते रहेते हैं उनमें भी श्रावकों को शिथिलता नहीं करना चाहिये, तत्त्वके जानकारों को तो विशेषतासे उनमें सम्मिलित होना चाहिये । भावार्थ - जिन बिम्ब महोत्सव तथा धार्मिक सम्मेलनोंमें जानेसे धर्मकी प्रभावना तो होती ही है साथमें अनेक विद्वान् एवं धार्मिक सत्पुरुषोंके समागम से तत्वज्ञान प्राप्तिका भी सुअवसर मिल जाता है इसलिये धार्मिक सम्मेलनों में अवश्य जाना चाहिये । 1 संयम धारण करनेका उपदेश संयमो द्विविधश्चैव विधेयो गृहमेधिभिः । बिनापि प्रतिमारूपं व्रतं यद्वा स्वशक्तितः ॥ ७४० ॥ अर्थ- गृहस्थोंको दो प्रकारका संयम भी धारण करना चाहिये । या तो अपनी शक्तिके अनुसार प्रतिमारूप व्रतको धारण करना चाहिये अथवा विना प्रतिमा के भी अभ्यस्तरूप व्रतोंको धारण करना चाहिये । भावार्थ - जो व्रत नियमपूर्वक उत्तरोत्तर प्रतिमाओंमें पहले २ की प्रतिमाओंके साथ पाले जाते हैं उन्हें प्रतिमारूप व्रत कहते हैं। और जो व्रत नियमपूर्वक
SR No.022393
Book TitlePanchadhyayi Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakash Karyalay
Publication Year1918
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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