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विषय।
पृष्ठ।। विषय। सुख गुण क्या वस्तु है.... .... ९५ | आदेश और उपदेशमें भेद .... १६४ अनेकान्तका स्वरूप .... .... ९७ गृहस्थाचार्य भी आदेशदेनेका अदुःखका कारण .... .... .... | धिकारी है .... .... .... १६५ वास्तविक सुख कहांपर है .... १०० आदेशदेनेका अधिकारी अव्रती नहीं है १६५ जड़ पदार्थ ज्ञानके उत्पादक नहीं है १०२ गृहस्थोंके लिये दान पूजन विधान नैयायिक मतके अनुसार मोक्षका
अन्यदर्शन .... .... ....... स्वरूप .... .... .... १०९
उपाध्यायका स्वरूप .... .... १६९ निज गुणका विकाश दुःखका कारण
साधुका स्वरूप.... ..... .... १७० नहीं है ....
आचार्यमें विशेषता .... .... १७२ .... .... सम्यग्दर्शनका स्वरूप .... ....
चारित्रकी क्षति और अक्षतिमें कारण १७३ सम्यग्दर्शनके लक्षणोंपर विचार....
शुद्धआत्माके अनुभवमें कारण.... १७४ ज्ञानका स्वरूप.... ..... .....
चारित्रमोहनीयका कार्य.... .... १७४
आचार्य उपाध्यायमें साधुकी समानता १७५ स्वानुभूतिका स्वरूप .... .... श्रद्धादिकोंके लक्षण .... .... ११७
बाह्य कारणपर विचार.... .... . १७७ श्रद्धादिकोंके कहनेका प्रयोजन....
आचार्यकी निरीहता .... .... प्रशमका लक्षण.... ....
अणुव्रतका स्वरूप .... .... संवेगका लक्षण....
महाव्रतका स्वरूप .... .... अनुकंपाका लक्षण
गृहस्थोंके मूलगुण .... .... आस्तिक्यका लक्षण .... .... १२६
अष्ट मूल गुण जैनमात्रके लिये निःशंकितका लक्षण .... .... १३२
__ आवश्यक हैं.... .... .... भय कब होता है और भयका लक्षण
सप्त व्यसनके त्यागका उपदेश .... १८३ ... व उनके सात नाम.... .... १३६
अतीचारोंके त्यागका उपदेश .... निःकांक्षित अंग.... .... .... १४६ दान देनेका उपदेश ......... १८४ कर्म और कर्मका फल अनिष्ट क्यों है १५०
निनपूजनका उपदेश .... .... निर्विचिकित्साका लक्षण .... १५२ गुरु पूजाका उपदेश .... .... १८६ अमूढ दृष्टिका लक्षण.... .... ११५ जिनचैत्य गृहका उपदेश .... १८६ अरहंत और सिद्धका स्वरूप .... १५७ तीर्थयात्राका उपदेश गुरूका स्वरुप .... .... .... जिन बिम्बोत्सवमें संमिलित होनेका आचायेका स्वरूप .... .... १६४ उपदेश .... .... .... १८९
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