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________________ 667 पुटम् । प्रमाणवचनम् . प्रथमे श्रवणादिति प्रवर्तते त्रिगुणतः प्रसिद्धद्रव्य प्राक्सत्त्वं प्राणेनैति कलां प्राणगतेश्च प्राणाद्वायु: प्राणापानसमा प्रादयो गता प्राप्य साध्यम प्रीत्यप्रीतिविषादा प्रमाणवचनम् 184 | बुद्धया विवेच्यमा 290 567 ब्रह्माचार्यो ब्रह्मादक्षा. ब्रह्मोक्तंग्र ब्रूयात्ततस्य 535 | बोध्यत्वादिक्षते 546 376 | भचक्रंध्रुव 227 भसञ्जरस्य 131 भागोऽष्टमस्त्र भानामधः पुटम् 328 419 610 619 612 85 408 ... 582 586 589 210 582 583 फलं तत्रैव फेनपिण्डोपम 29 607 ... 424 बहुफलमिदं बलवद्वाधका बहुस्यां बहुस्यां बह्वयस्स्याम बाघाबाधा बाधिता च स्मृतिः बाध्याबाधक बालैर्विकल्पिता ह्येते भारं वो भिक्षवो भावध्वंसात्मनो | भावस्स्वतस्त्रो 177 | भावाय सर्व भासमानः किमात्मा 177 | भावे हेत्वान्तरैः | भिन्नाभिन्नत्व 1571 भिन्नांशपू 344 | भुञ्जीत तैजसे 328 ] भूग्रहभानां 329 582 | भगालःकादम्बो 601 | भूगोलान्तः 192 भूततन्मात्र 299 1 भूतार्थभा 375 197 582 327 324 -299 316 565 583 588 603 606 464 334 बिभ्राणः पर बुदेरगोचर बुद्धयाऽवसीयते .
SR No.022392
Book TitleTattva Muktakalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorD Srinivasachar, S Narasimhachar
PublisherMysore Government Branch
Publication Year1933
Total Pages746
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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