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which are as follows - sleeping resting in lonely places ("yekantashayan"), body mortification ("kāyaklesh"), restriction on begging round (vratthi parisankhyāna), fasting ("anashan"), eating less then the fill ("unodara"), giving up delicacies (rasa parityaga) it consists the abandonment of tasty delicacies which intoxicate the elephants of senses.
अंतरंग तपों का स्वरूप (Internal austarities conduct)
स्वाध्यायः शुभकर्मणश्च्युतवतः संप्रत्यवस्थापनम, ध्यानं व्यापृतिरामयाविनि गुरौ, वृद्धे च बाले यतौ। कायोत्सर्जन सक्रिया विनय-इत्येव तपः षड्विधं, वंदेऽभ्यन्तरमन्तरंग बलवद्विद्वेषि विध्वंसनम् ।।5।।
(स्वाध्यायः) स्वाध्याय करना, (शुभकर्मणः च्युतवतः) शुभ क्रियाओं से च्युत होने वाले अपने आपको (संप्रति-अवस्थापन) पुनः सम्यक् प्रकार से स्थिर करना, (ध्यान) धर्म्य-शुक्लध्यान करना, (आमयांविनि) रोगी (गुरौ) गुरू (वृद्धे च बाले यतौ) वृद्ध और अल्पवय वाले मुनियों के विषय में (व्यापृति) सेवा/वैय्यावृत्य आदि करना, (कायोत्सर्जन सक्रिया) शरीर से ममत्व छोड़कर कायोत्सर्ग की क्रिया करना, (विनय) विनय (इत्येव) इस प्रकार (अन्तरंग-बलवत्-विद्वेषि-विध्वंसन) अन्तरंग के बलवान् काम-क्रोध-मान-माया आदि शत्रुओं को नष्ट करने वाले (षट्-विध) छह प्रकार के (अभ्यन्तरं तपः) अन्तरंग तप को (वन्दे) नमस्कार करता हूँ।
I hereby pay utmost regards to the following six kinds of internal austarities which destroy the powerful internal enemies named deceit etc. self study, (swādhyāya), expiation (Prayaschit) i.e. to properly repent for the wrongs commited and rehabilitate/stabilize self at times of falling from the appropriate activities, meditation (dhyāna) i.e. to perform right meditation and pure meditation, service to elders (vaiya vratti) ie. to attend and serve the diseased/sick preceptor old and childlike saints, body mortification ("kāyotsarga") mortification after giving up the sense of mineness with body and reverence ("vinaya").
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Gems of Jaina Wisdom-IX