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________________ चैत्य भक्तिः (Chetya Bhakti) श्री गौतमादिपद - मद्भुतपुण्यबन्ध मुद्योतिता - खिल - ममौष - मघप्रणाशम् वक्ष्ये जिनेश्वरमहं प्रणिपत्य तथ्यं निर्वाणकारण - मशेषजगद्धितार्थम्।। (श्री गौतमादिपद - मद्भुतपुण्यबन्ध) श्री गौतम आदि गणधरों के द्वारा की गई महावीर भगवान् की “जयति भगवान्" इस श्लोक से की गई स्तुति अद्भुत पुण्यबन्ध को करने वाली है। (अखिलं अमौघम् अघ प्रणाशम्) सम्पूर्ण पाप समूह को नाश करने वाली है। (तथ्यं उद्योतिता) सत्य का प्रकाशन करने वाली है (अह) मैं संस्कृत टीकाकार (निर्वाणकारणम्) मुक्ति के कारण, (अशेष जगत् हितार्थम्) सम्पूर्ण जगत/संसारी जीवों के हितकारक (जिनेश्वरं प्रणिपत्य) जिनेन्द्र देव को नमस्कार करके (वक्ष्ये) उस स्तुति की टीका कहूँगा। The eulogy of lord Mahāvira as composed by shri Ganadhar Gautum and other Ganadharas or Jayate Bhagwānyields marvels/miracles, bondage of virtuous karmas. It is able to destroy all sins and causes manifestation of truth. I shall now mention/state the commentary there of, after paying obeisance to shri Jineņdra deva, who blesses the aspirants of salvation with salvation and who is the great benefactor of the whole universe/all mundane souls. जयति भगवान हेमाम्भोज-प्रचार-विजृम्भिताअमर - मुकुटच्छायोगीर्ण - प्रभा - परिचुम्बितौ। कलुष-हृदया मानोभ्रांताः परस्पर-वैरिणः, विगत-कलुषाः पादौ यस्य प्रपद्य विशश्वसुः।।।।। (यस्य) जिन अरहंत देव के (हम-अम्भोज-प्रचार-विजृम्भितौ) स्वर्णमयी कमलों पर अन्तरिक्ष गमन/चलने से शोभायमान तथा (अमर-मुकुटच्छाया-उद्गीर्ण प्रभा-परिचुम्बितौ) देवों के मुकुटों की कान्ति से निकली हुई प्रभा से सुशोभित हुए, (पादौ) चरण-युगल को (प्रपद्य) प्राप्त करके (कलुष हृदयाः) कलुषित-मलिन हृदय वाले अर्थात् कलुषित परिणामों वाले जीव, (मान-उद्भ्रान्ताः) अहंकार से भ्रान्ति को प्राप्त जीव और (परस्पर-वैरिणः) आपस में वैर भाव रखने वाले जीव (विगत-कलुषा) कलुषता/मलिन परिणामों से रहित होते हुए, (विशश्र्वसुः) परस्पर में विश्वास को प्राप्त होते हैं। (स) वे (भगवान) केवलज्ञान युक्त, परम अन्तरंग बहिरंग लक्ष्मी के स्वामी अरहंत परमेष्ठी (जयति) जयवंत रहते हैं। Gems of Jaina Wisdom-IX35
SR No.022375
Book TitleGems Of Jaina Wisdom
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Jain, P C Jain
PublisherJain Granthagar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size19 MB
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