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of three universes, comparable with three moons, adorned with the networks of matchless pearls, supported by a long rod made of blue gems and extremely fascinating magnificently exist upon shri Jineņdra deva.
ध्वनिरपि योजनमेकं, प्रजायते श्रोतृ-हृदयहारि-गम्भीरः। ससलिल-जलधर-पटल-ध्वनितमिव प्रविततान्त-राशावलयम्।। 58 ।।
(श्रोतृहृदय हारिगभीरः) कर्ण और हृदय को हरने वाली गम्भीर (ध्वनिः अपि) दिव्य-ध्वनि भी (एक योजनं) एक योजन तक (प्रजायते) होती है। (ससलित-जलधर पटल ध्वनितम इव) यह सजल मेघ पटल की गर्जना के समान (प्रवितत-अन्तर-आशावलय) दिशाओं के अन्तराल को व्याप्त करने वाली होती है।
Divine Sound :- The deep divine sound of shri Jinendra deva is pleasing to the ears and minds/hearts of the audience. It is similar to the roarings/uproars of the clouds full of water, pervading the space of all the ten directions and it echoes througtout an area of one yojana.
स्फुरितांशु-रत्न-दीधिचि-परिविच्छुरिताऽमरेन्द्र-चापच्छायम। घियते मृगेन्द्रवर्यः-स्फटिक-शिला-घटित-सिंह-विष्टर-मतुलम्।। 59 ।।
(स्फुरित-अंशुरत्न-दीधिति-परिविच्छुरित-अमरेन्द्र-चापच्छाय) देदीप्यमान किरणों वाले रत्नों की किरणों से इन्द्रधनुष की कान्ति को धारण करने वाला (अतुलम्) अनुपम (स्फुटिक शिला घटित सिंह विष्टरम्) स्फटिक की शिला में निर्मित सिंहासन (मृगेन्द्रवर्यैः) श्रेष्ठ सिंहों के प्रतीकों से (ध्रियते) धारण किया जाता है।
Throne :- The throne of shri Jinendra deva is decorated by the symbods of great lions. It is made of the rock of quartz. It is mathchless and it is glamorous as the rainbow having the lustre of rediating rays of celestial jewels.
यस्येह चतुस्त्रिंशत्-प्रवर-गुणा-प्रतिहार्य-लक्ष्यम्यश्चाष्टौ। तस्मै नमो भगवते, त्रिभुवन-परमेश्वराईते गुण-महते।। 60|| (इह) इस जगत् में (यस्य) जिसके (चतुस्त्रिशत् प्रवर गुणा) ३४
Gems of Jaina Wisdom-IX 163