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Paramatma Prakash in Apabhransha 340) अण्णु वि बंधु वि तिहुयणहँ सासय सुक्ख-सहाउ ।
तित्थु जि सयलु वि कालु जिय णिवसइ लद्ध-सहाउ ॥२०२॥ 341) जम्मण-भरण-विवजियउ चउ गइ-दुक्ख-विमुक्कु ।
केवल-दंसण-णाणमउ गंदइ तित्थु जि मुकु ॥ २०३॥ 342) अंतु वि गंतुवि तिहुवणहँ सासय-सोक्ख-सहाउ ।
तेत्यु जि सयलु वि कालु जिय णिवसइ लद्ध-सहाउ ॥२०३*१ ।। 343) जे परमप्प-पयासु मुणि भावि भावहि सत्थु ।
मोहु जिणेविणु सयल जिय ते बुज्झहि परमत्थु ।। २०४॥ 344) अणु वि भत्तिए जे मुणहि इहु परमप्पपयासु ।
लोयालोय-पयासयरु पावहिं ते वि पयासु ॥२०५॥ 345) जे परमप्प-पयासयहं अणुदिणु णाउ लयंति ।
तुट्टइ मोहु तड ति तहँ तिहुयण-णाह हवंति ॥२:६॥ 346) जे भव-दुक्ावह बीहिया पउ इच्छहि णिव्वाणु ।
इह परमप्प-पयासयह ते पर जोग्ग वियाणु ॥२०७॥ 347) जे परमप्पहँ भत्तियर विसय ण जे वि रमंति ।
ते परमप्प पयासयहँ मुणिवर जोग्ग हवंति ॥ २०८ ॥ 348) णाण-वियक्खणु सुद्ध-मणु जो जणु एहउ कोइ ।
सो परमप्प-पयासयहँ जोग्गु भणंति जि जोइ ॥२०९॥ 349) लक्खण-छंद-विवज्जियउ एहु परमप्प-पयासु ।
कुणइ मुहावइँ भावियउ चउ-गइ-दुक्ख-विणासु ॥ २१०॥ 350) इत्थु ण लेवउ पंडियहि गुण-दोमु वि पुणरुत्तु ।
भट्ट-पभायर-कारणइँ मइँ पुणु पुणु वि पउत्तु ॥ २११॥ 351) जं मइ किं पि विजंपियउ जुनाजुत्तु वि इत्थु ।
तं वर-णाणि खमंतु महु जे बुज्झहि परमत्थु ।। २१२ ॥