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Paramatma Prakash in Apabhransha
203) देउ णिरंजणु इउँ भणइ णाणि मुक्खु ण भंति ।
णाण-विहीणा जीवडा चिरु संसारु भमंति ॥ ७३ ॥ 204) णाण-विहीण मोक्ख-पउ जीव म कासु वि जोइ ।
बहुएँ सलिल- विरोलियइँ करु चोप्पडउ ण होइ ॥ ७४ ॥ 205) भव्वाभव्वह जो चरणु सरिसु ण तेण हि मोक्खु ।
लद्धि ज भव्वह रयणत्तय होइ अभिण्णे मोक्खु ॥ ७४*१ ॥ 206) जं णिय-बोहहँ बाहिरउ णाणु वि कज्जु ण तेण ।
दुक्खहँ कारणु जेण तउ जीवहँ होड़ खणेण ॥ ७५ ॥ 207) तंणिय-गाणु जि होइ ण वि जेण पत्रड्ढइ राउ । दिrयर-किरण पुरउ जिय किं विलसह तम-राउ ॥ ७६ ॥ 208) अप्पा मिल्लित्रि णाणियहँ अण्णु ण सुंदरु वत्थु । तेण ण विसयहँ मणु रमइ जाणंत परमत्थु ॥ ७७ ॥ 209) अप्पा मिल्लिवि णाणमउ चित्ति ण लग्गह अण्णु । मरगउ जे परियाणियउ तहुँ कच्चे कउ गण्णु ॥ ७८ ॥ 210) भुंजंतु विणिय-कम्म-फल मोहइँ जो जि करेइ ।
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भाउ असुंदरु सुंदरु विसो पर कम्मु जोड़ || ७९ ॥ 211) भुंजंतु त्रिणिय-कम्म-फलु जो तहि राउ ण जाइ ।
सो विबंध कम्मु पुणु संचिउ जेण विलाइ ॥ ८० ॥ 212) जो अणु-मेत्तु विराउ मणि जाम ण मिल्लड़ एत्थु ।
सो विमुच्च ताम जिय जाणंतु वि परमत्थु ॥ ८१ ॥ 213) बुज्झइ सत्थइँ तर चरइ पर परमत्थु ण वेइ ।
ताव ण मुंबई जाम णवि इहु परमत्थु मुणे || ८२
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