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Paramatma Prakash in Apabhransha 111) जोइज्जइ तिं बंभु पर जाणिज्जइ ति सोइ ।
बंसु मुणेविण जेण लहु गम्मिज्जइ परलोइ ॥१०९ ॥ 112) मुणि-वर-विदह हरि-हरहुँ जो मणि णिवसइ देउ ।
परहुँ जि परतरु णाणमउ सो वुचइ पर-लोउ ॥ ११० ॥ 113) सो पर वुञ्चइ लोउ परु जसु मइ तित्थु वसेइ ।
जहि मइ तहिँ गइ जीवहँ जि णियमें जेण हवेइ ॥ १११ ॥ 114) जहिं मइ तहि गइ जीव तुहुँ मरणु वि जेण लहेहि ।
ते परवंभु मुरवि मइँ मा पर-दव्वि करेहि ॥ ११२ ॥ 115) जं णियदव्वहँ भिण्णु जडु तं पर-दव्यु वियाणि ।
पुग्गलु धम्माधम्म गहु कालु वि पंचमु जाणि ॥ ११३ ॥ 116) जइ णिविसद्ध वि कु वि करइ परमप्पइ अणुराउ ।
अम्गि-कणी जिम कट-गिरी डइइ असेसु वि पाउ ॥ ११४॥ 117) मेल्लिवि सयल अवक्खडी जिय णिचिंतउ होइ ।
चित्तु णिवेसहि परम-पए देउ णिरंजणु जोइ ॥ ११५॥ 118) जं सिवन्दंसणि परम-मुहु पावहि प्राणु करंतु ।
तं मुहु भुवणि वि अस्थि णवि मेल्लिवि देउ अणंतु ॥ ११६ ॥ 119) जं मुणि लहइ अणंत-मुहु णिय-अप्पा झायतु ।
तं मुहु इंदु वि णवि लहइ देविहि कोडि रमंतु ॥ ११७ ॥ 120) अप्पा-दंसणि जिणवरहँ जं मुहु होइ अणंतु ।
तं मुहु लहइ विराउ जिउ जाणंतउ सिउ संतु ॥ ११८ ॥ 121) जोइय णिय-मणि णिम्मलए पर दीसइ सिउ संतु ।
अंबरि णिम्मलि घण-रहिए भाणु जि जेम फुरंतु ॥ ११९ ॥