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Paramatma Prakash in Apabhransha 66) बंधु वि मोक्खु वि सयल जिय जीवहँ कम्मु जणेइ ।
अप्पा किंपि वि कुणइ णवि णिच्छउ एउँ भणेइ ॥ ६५ ॥ 67) सो पत्थि ति पएसो चउरासी-जोणि-लक्ख-ममम्मि ।
जिण-वयणं ण लहंतो जत्थ ण डुलुडल्लिओ जीवो ॥ ६५*१ ।। 68) अप्पा पंगुह अणुहरइ अप्पु ण जाइ ण एइ।
सुवणत्तयहँ वि ममि जिय विहि आणइ विहि णेइ ॥ ६६ ॥ 69) अप्पा अप्पु जि परु जि परु अप्पा पर जि ण होइ ।
परु जि कयाइ वि अप्पु णवि णियमें पभणहिं जोइ ।। ६७ ॥ 70) ण वि उप्पजइ ण वि मरइ बंधु ण मोक्खु करेइ ।
जिउ परमत्ये जोइया जिणवरु एउँ भणेइ ॥ ६८ ॥ 71) अत्थि ण उन्भउ जर-मरणु रोय वि लिंग वि वण्ण । ' ' णियमि अप्पु वियाणि तुहुँ जीवहँ एक वि सष्ण ॥ ६९ ॥ 72) देहहँ उम्भउ जर-मरणु देहहँ वण्णु विचित्त ।
देहहँ रोय वियाणि तुहुँ देहहँ लिंगु विचित्तु ॥ ७० ॥ 73) देहहँ पेक्खिवि जर-मरणु मा भउ जीव करेहि ।
जो अजरामरु बंभु परु सो अप्पाणु मुणेहि ॥ ७१ ॥ 74) छिज्जउ भिजउ जाउ खउ जोइय एहु सरीरु । ___अप्पा भावहि णिम्मलउ जिं पावहि भव-तीरु ॥ ७२ ॥ 75) कम्म] केरा भावडा अण्णु अचेयणु दव्यु ।
जीव-सहावाँ भिण्णु जिय णियमिं बुज्झहि सव्वु ॥ ७३ ॥ 76) अप्पा मेल्लिविणाणमउ अण्णु परायउ भाउ ।
सो छंडेविणु जीव तुहुँ भावहि अप्प-सहाउ ॥ ७४ ॥