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Spiritual Enlightenment
55) कारण-विरहिउ मुद्ध-जिउ वड्ढइ खिरइ ण जेण ।
चरम-सरीर पमाणु जिउ जिणवर बोल्लहिं तेण ॥ ५४॥ 56) अट्ठ वि कम्मइ बहुविहइँ णवणव दोस वि जेण ।
मुद्धा एकु वि अस्थि गवि मुण्णु वि वुच्चइ तेण ॥ ५५ ॥ 57) अप्पा जणियउ केण ण वि अप्पे जणिउ ण कोइ ।
दव्व-सहावे णिचु मुणि पजउ विणसइ होइ ॥ ५६ ॥ 58) तं परियाणहि दव्यु तुहुँ.जं गुण-पज्जय-जुत्तु ।
सह-भुव जाणहि ता( गुण कम-भुव पज्जउ वृत्तु ॥ ५७ ॥ 59) अप्पा बुज्झहि दव्यु तुहुँ गुण पुणु दंसणु णाणु ।
पज्जय चउ-गइ-भाव तणु कम्म-विणिम्मिय जाणु ॥ ५८ ॥ 60) जीवह कम्मु अणाइ जिय जणियउ कम्मु ण तेण ।
कम्मे जीउ वि जणिउ णवि दोहि वि आइ ण जेण ॥ ५९ ॥ 61) एहु ववहारे जीवडउ हेउ लहेविणु कम्मु ।
बहुविह-भावे परिणवइ तेण जि धम्मु अहम्मु ॥ ६० ॥ 62) ते पुणु जीवह जोइया अट्ठ वि कम्म हवंति ।
जेहि जि अंपिय जीव णवि अप्प-सहाउ लहंति ॥ ६१ ॥ . 63) विसय-कसायहि रंगियहँ जे अणुया लग्गति ।
जीव-पएसह मोहियह ते जिण कम्म भणंति ॥ ६२॥ 64) पंच वि इंदिय अण्णु मणु अण्णु वि सयल-विभाव ।
जीवहँ कम्मइँ जणिय जिय अण्णु वि चउगइस्ताव ॥ ६३॥ 65) दुक्खु वि मुक्खु वि बहु-विहउ जीवह कम्मु जणेइ ।
अप्पा देक्खइ मुणइ पर णिच्छउ एउँ भणेइ ॥ ६४ ॥