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शार्दूलविक्रीडित । भुंजता महुरा विवागविरसा, किंपागतुल्ला इमे, कच्छूकंडुअणं व दुक्खजणया, दाविंति बुद्धिं सुहे।। मज्झण्हे मयतिण्हियबसययं,मिच्छाभिसंधिप्पया, भुत्ता दिति कुजम्मजोणिगहणंभोगामहावैरिणो७
. मत्तगयंद (सवैया)। भोगतमें मधुसे परिणाममें,
हैं किमपाकसे प्राण हनैया । खाज खुजावतमें रस आवत,
_यों दुखमें सुखबुद्धि दिवैया ॥ ग्रीषमकी मृग प्यास समान,
वृथा विपरीत विभाव बिछैया। भोग महा रिपु भूरि कुजोनिमें, भोगनहारकों डारत भैया ॥७॥
अनुष्टुप् । सका अग्गि णिवारेउं, वारिणो जलिउवि हु । सव्वोदहिजलेणावि, कामग्गी दुण्णिवारओ॥६॥
दोहा। दावा अनल प्रचंड अति, बुझत गिरत जलधार । पै सागर भर सलिलसों, कामानल अनिवार ॥ ८॥
___ आर्या।। विसमिव मुहंमि महुरा, परिणाम णिकाम दारुणा विसया ॥