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प्रस्तावना।
पाठकगण ! इस छोटेसे ग्रंथको जो कि आपके हस्तगत है शाह
जा भोगीलाल ताराचन्दजीने अहमदाबादमें गुजराती भाषान्तर र सहित प्रकरणमालामें छपाया है । ग्रंथ उपयोगी और सरस है, संस्कृतादिमें इसकी अन्यान्य टीका हुई होंगी, परन्तु वे मेरे देखनमें नहीं आई । मैंने केवल उपर्युक्त पुस्तकपरसे हिन्दी साहित्यके प्रेमियोंकी सेवा की है । जहांतक होसका है, गाथाका सम्पूर्ण आशय पद्यमें लानेका प्रयत्न किया है, और इस विषयमें महाराज सोमप्रभाचार्यजीविरचित
और पंडित बनारसीदासजी द्वारा अनुवादित सूक्तमुक्तावलीका अनुकरण किया है। ___ अनुसंधान करनेसे यही प्रतीत हुआ है कि, इस ग्रंथके कर्ता एक श्वेताम्बराचार्य्य हैं । परन्तु पाठकगण ! यदि आप इसे आद्योपान्त वांच जावेंगे, तो आपको विदित हो जावेगा कि, इस ग्रंथमें कोईभी साम्प्रदायिक झगड़ा नहीं है । हां ! जो श्वेताम्बरके नाममात्रसेही चिड़ते हैं, उनके लिये कुछ उपाय नहीं है । परन्तु हम यह बात उच्च खरसे कहेंगे कि, जो मनुष्य देवदुर्लभ और अनन्तभूत कालसे अमिल ऐसे सम्यक्चारित्रका लालसी है, वह चाहे दिगम्बर या श्वेताम्बरके गृहमें उपजा हो, और चाहे अन्य ब्राह्मण क्षत्रियादिकी संतान हो, उसे यह ग्रंथ मंत्रका काम देनमें समर्थ होगा । अस्तु ! हम जैसोंकी छुद्र लेखिनीसे ऐसे अपूर्व और लाभकारी ग्रंथकी प्रशंसा लिखी जाना ग्रंथका गौरव घटाना है । पाठक इसे स्वयम् पढ़ें और अपनी क्षयोपशम शक्तिके अनुसार ज्ञान वैराग्यका अनुभव करें। इस पुस्तकमें ऐसी बहुतसी गाथाएँ और छंद हैं, जो शास्त्रसभा और व्याख्यानके समय दृष्टान्तों और उपदेशोंके पुष्टीकरण करनेमें उपयोगी हो सकते हैं, अतः देशके वक्ताओं, श्रोताओं,