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(१२) जोवन सलिल विलास तट, अरु शृंगार तरंग । को को नर बूड़े नहीं, वनिता सरिता संग ॥ ३६ ॥
सोअसरी दुरिअदरी कवडकुडी महिलिया किलेसकरी । वइरविरोपणअरणी दुखखाणी सुक्खपडिवक्खा ॥ ३७॥
तोटक। तिय शोकनदी अघचूल अहै। अरिणी सम द्रोहकीआग दहै ॥ छल कुंड भरी केलि कारिणी है। दुखखानि सदा सुखहारिणी है ॥ ३७॥ अमुणि अमण परिकम्मो सम्मं को णाम णासिउं तरई। वम्महसर पसरोहे दिद्विच्छोहे मयच्छीणं ॥ ३८॥
चौपाई। चित्त विशुद्ध कियो जिन नाहीं । ऐसे मानव को जगमाहीं ॥ मृगनैनीतें वरसन हारे । वक्र चितौन वान जिन टारे ॥ ३८॥
१ चकमकपत्थर । २ तकरार ।