SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ ++20++8 S++ C++ ++SC++20++ ++C++ प्रकीर्णक-पुस्तकमाला a++ ++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ + ++ ++3 ___'उन (श्रीकुन्दकुन्दाचार्य ) के पवित्र वंशमें वे उमास्वाति है मुनि हुए हैं जो संपूर्ण पदार्थोंके जाननेवाले थे, मुनिपुङ्गव थे । और जिन्होंने जिनदेव-प्रणीत आगमके संपूर्ण अर्थसमूहकी है सूत्ररूपमें रचना की है। वे प्राणियोंकी रक्षामें बड़े सावधान थे और उन्होंने एक बार पीछीके रूपमें गृध्रके परोंको धारण किया था, उस वक्तसे ही बुध-जन उनको 'गृध्रपिच्छाचार्य' कहने लगे थे। हू अतुच्छ-गुण-सम्पातं गृध्रपिच्छं नतोऽस्मि तम् । पक्षीकुर्वन्ति यं भव्या निर्वाणायोत्पतिष्णवः ॥ -पार्श्वनाथचरिते, श्रीवादिराजसूरिः 'जिस प्रकार पक्षी ऊपर आकाशमें उड़नेके लिये अपने पक्षों-परोंका सहारा लेते हैं उसी प्रकार मोक्ष-प्राप्तिके लिये 2 उड़ने-ऊपर उठनेके इच्छुक भव्यजन जिन्हें अपना पक्ष बनाते + हैं-जिनके मोक्षशास्त्र ( तत्त्वार्थसूत्र ) का आश्रय लेते हैं-उन महान् गुणोंके समूह श्रीगृध्रपिच्छाचार्यको मैं नमस्कार करता हूँ। तत्त्वार्थसूत्र-कर्तारं गृध्रपिच्छोपलक्षितम् । वन्दे गणीन्द्र-संजातमुमास्वामि-मुनीश्वरम् ॥ --तत्त्वार्थ० माहात्म्य ___'जो 'तत्त्वार्थसूत्र' के कर्ता-रचयिता हैं, गृध्रपिच्छसे उपलक्षित हैं-गृध्रपक्षीके परोंकी पीछी धारण करनेके कारण 'गृध्रपिच्छाचार्य' नामसे नामाङ्कित हैं और गणधरवंशमें उत्पन्न है हुए हैं अथवा गणीन्द्र-श्रीकुन्दकुन्दाचार्यसे उत्पन्न हुए हैं-उनके + शिष्योंमें हैं-उन श्रीउमास्वामिमुनिराजकी मैं वन्दना करता हूँ8 उनके पुण्यगुणोंका स्मरण करके उनके चरणोंमें सिर झुकाता हूँ।' S++8++ ++ ++20++ ++S++ ++ ++ ++ ++ ++ ++CO++20++OE++do++OC++26++ 8++20++ee++ 8++8++ C++2C++ ++20++20++ C++OO++ ++ C++ ++
SR No.022364
Book TitleSatsadhu Smaran Mangal Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year94
Total Pages94
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy