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________________ C++ON++ सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ S++68++20++20++20++20++S++ ++ ++ ++ ++ ++ है और अपने वचनों द्वारा मनुष्यों तथा राजसमूहको संबोधन कर है + मुक्ति-रमाके स्वामी हुए हैं वे संपूर्ण कर्ममलसे रहित शुद्धचिद्रूपके धारी श्रीगौतमस्वामी नित्य ही तुम्हारे और हमारे ध्रुव (शाश्वत), कल्याणके कर्ता होवें तथा देहधारियोंकी मनोवांछित सिद्धिमें सहायक बनें-अर्थात् सभी जन उनका सम्यक् आराधन करके अपने इष्ट फल ( मोक्ष ) को प्राप्त करने में समर्थ होवें।' k++ce+ +ee++Ge++ ++ ++ ++ ++ ++ श्रीभद्रबाहु-स्मरण -+BPoe+भद्रबाहुरग्रिमः समग्रबुद्धिसम्पदा शुद्ध-सिद्ध-शासनं सुशब्द-बन्ध-सुन्दरम् । इद्ध-वृत्त-सिद्धिरत्र बद्धकर्मभित्तपो वृद्धि-बर्द्धित-प्रकीर्तिरुद्दधे महर्द्धिकः ॥ यो भद्रबाहुः श्रुतकेवलीनां मुनीश्वराणामिह पश्चिमोऽपि । अपश्चिमोऽभूद्विदुषां विनेता सर्वश्रुतार्थ-प्रतिपादनेन ॥ __ -श्रवणबेल्गोल-शिलालेख नं० १०८ _ 'जो सारी बुद्धि-सम्पत्तिकी प्राप्तिमें अग्रगण्य थे, निर्मलचारित्रकी सिद्धिको लिये हुए थे, बद्धकर्मोके भेत्ता थे-आत्मासे कर्मोंके सम्बन्धका विच्छेद करनेवाले थे और तपकी वृद्धिसे + जिनकी लोकमें महती कीर्ति बढ़ी हुई थी, उन महर्द्धिक-महाऋद्धि धारक-भद्रबाहुने (वीरभगवानके) उस शुद्ध तथा सिद्ध शासन++30++ ++ ++S++ ++S++S++++S++S++C++ ++ ++20++20++ ++6
SR No.022364
Book TitleSatsadhu Smaran Mangal Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year94
Total Pages94
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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