________________
प्रकीर्णक-पुस्तकमाला E++PR++ ++ ++
++
++
++BE++
++
++
++
++
i++
श्रीगौतम-गणधर-स्मरण
++10++26++
C++20++20++20++CC++OE++
++
++20++20++00++
++cE++
: मानस्तम्भं प्रदृष्टा गतनिखिलमदोऽभूच्च यो योगिराजो - वीरस्यान्ते प्रसिद्धः प्रवरगणधरस्त्यक्तसर्वप्रसङ्गः । ए श्रेयोवृष्टिं ततान शुभजन-सुखदां पापताप-प्रणाशां
वंदेऽहं गौतमं तं सकलनृप-नुतं शक्रवृन्द-प्रवन्धम् ॥ १॥
कर्मारातिं विजित्य व्रतसुभट-चयैः केवलज्ञानमाप्य * श्रीसिद्धान्तं निरूप्य नर-नृपति-गणं सम्प्रबोध्य स्ववात्यैः। र योऽभून्मुक्तिप्रियेशोऽखिलमलरहितः शुद्धचिद्रूपधारी श्रेयो वो नः स नित्यं ध्रुवमपि कुरुतां वाञ्छितं देहभाजाम् ॥२॥
--गौतमचरित्रे, श्रीधर्मचन्द्रः ___(श्रीवीरके समवसरणमें ) मानस्तम्भको देखकर जिनका सारा मद जाता रहा, जो वीरके समीप सम्पूर्ण परिग्रहका त्याग करके प्रसिद्ध योगिराज और प्रवर ( अत्युत्कृष्ट ) गणधर हुए,
जिन्होंने पाप-तापको शान्त करनेवाली तथा भव्यजनोंको सुखकी . है देनेवाली कल्याणवृष्टि का विस्तार किया, और जो सकलनृपोंसे
स्तुत एवं शक्र-समूहसे प्रवंद्य थे, उन गौतमस्वामीकी मैं वन्दना करता हूँ-उन्हें भक्तिभावपूर्वक प्रणाम करता हूँ।'
'जो व्रतरूप-सुभट-समूहके द्वारा कर्मशत्रुको जीतकर, केवल• ज्ञानको प्राप्तकर, श्रीसिद्धान्तका-द्वादशाङ्ग-श्रुतका-निरूपण कर + ++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ ++ ++
++26++2C++
++26++OE++26++
E++26++26++20++
E++00++
C++0
++50