SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्त्साधु-स्मरण-मंगलपाठ ++ ++ ++++++MAHARNORS 2++G2C++ ++26++ @++ra++ श्रीवीर-चईमानस्मरण t+28++23++ Home C++CE++KO++ce++ ++8++ ++ 8++CE++26++ १ वीर-जिन-वन्दन शुद्धि-शक्त्योः परां काष्ठां योऽवाप्य शान्तिमुत्तमाम् । देशयामास सद्धर्म तं वीरं प्रणमाम्यहम् ॥ -युगवीरः । _ 'जिन्होंने, ज्ञानावरण और दर्शनावरणके विनाशसे निर्मल ज्ञानदर्शनकी आविर्भतिरूप शुद्धिकी तथा अन्तराय कर्मके क्षयसे । वीर्यलब्धिरूप शक्तिकी पराकाष्ठाको उत्कृष्ट अवस्था अथवा चरम सीमाको-प्राप्त करके और मोहनीय कर्मके समूल विध्वंससे 8 आत्मामें प्रशमसुख-स्वरूप उत्तमशान्तिकी प्राप्ति करके, समीचीन धर्मकी देशना की है उन श्रीवीर भगवान्को मैं प्रणाम करता हूँ-गुणानुरागपूर्वक उनके सामने नत-मस्तक होता हूँ। नमः श्रीवर्द्धमानाय निर्धत-कलिलात्मने । सालोकानां त्रिलोकानां यद्विद्या दर्पणायते ॥ -रत्नकरण्डश्रावकाचारे, श्रीसमन्तभद्रः 'जिनकी विद्या केवलज्ञान-ज्योति-अलोक-सहित तीनों लोकोंके लिये दर्पणकी तरह आचरण करती है-उन्हें अपने में स्पष्टरूपसे प्रतिबिम्बित करती है। अर्थात् जिनके केवल-ज्ञानमें अलोक-सहित तीनों लोकके सभी पदार्थ साक्षात् रूपसे प्रतिभासित ++++++ ++ ++ ++S++++ ++ ++ ++++ ++8++20++20++S++ E++EC++ E++ ++ S++ S++ ++88++20++ C++OO++S ++8
SR No.022364
Book TitleSatsadhu Smaran Mangal Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year94
Total Pages94
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy