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________________ 1. वनस्पतिकाय का - 10,000 वर्ष 1. अग्निकाय का - तीन दिन 1. ग. मनुष्य का - तीन पल्योपम 1. ग. तिर्यञ्च का - तीन पल्योपम 1. वैमानिक देवका • 33 सागरोपम 1. असुरकुमार का - साधिक एक सागरोपम 9. भवनपति का - देशोन एक पल्यो. 1. बेन्द्रिय का - बारह वर्ष 1. तेइन्द्रिय का - 49 दिन 1. चउरिन्द्रिय का - छ महिना || चोवीश दंडक में जघन्य आयुष्य ।। 10: पृथ्वीकायादि का • अन्तर्मुहूर्त 10. भवनपति का - 10,000 वर्ष 1. नारक का · 10,000 वर्ष 1. व्यन्तर का • 10,000 वर्ष 1. वेमानिक का - 1 फ्ल्योपम 1. ज्योतिष का - 1 पल्योपम || चोवीश दंडक में छ पर्याप्ति ।। 13 देवदंडक में : छ पर्याप्ति पांच स्थावर को · चार 1 ग. मनुष्य को - छ पर्याप्ति . तीन विकलेन्द्रिय को - पांच . 1 ग. तिर्यञ्च को - छ पर्याप्ति 1 नारक को : छ पर्याप्ति ० लोक के पर्यन्त भाग में बादर वायुकाय बिना दूसरे बादर एके. न होने से उधर केवल बादर वायुकाय कहा है । कारण कि ऐकन्द्रिय के 22 भेद में से लोक के पर्यन्त में 12 जीवभेद है। पांच बादर पर्याप्ता, पांच बादर अपर्याप्ता ये 10 भेद नहि है। "चोवीश दंडक में छ दिशि का आहार" 19 देवादिदंडक में · छ दिशि का 5 स्थावर में 3-4-5-6 दिशि का। पदार्थ प्रदीप 480
SR No.022363
Book TitlePadarth Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnajyotvijay
PublisherRanjanvijay Jain Pustakalay
Publication Year132
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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